सामाजिक

जिस पर बीती, उसने जानी

मन बहुत उदास है और आंखें आंसुओं को छिपाने में नाकाम हो रही हैं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि कैसे लिखूं उस दर्द को जो शब्दों के माध्यम से समझाना बहुत मुश्किल है।
अभी कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर लगातार दहेज उत्पीड़न के मामले और अवैध संबंधों के मामलों की जैसे आंधी ही आ गई हो, ये वो समस्याएं हैं जो हमेशा से हमारे समाज में विद्यमान थी और आज भी हैं। कभी-कभी लगता है कि हम वैसे ही नरक का खौफ खाते हैं, असली नरक देखना है तो ऐसे लोगों के बीच फंस जाओ,जो न तो इंसानियत रखते हैं और न ही इनके हृदय में दया भाव है। चंद पैसों के लिए कुछ भिखमंगे किसी की फूल जैसी बेटी को मार डालते हैं या मरने के लिए विवश कर देते हैं। या फिर ऐसी-ऐसी यातनाएं देते हैं जिन्हें देखकर, सुनकर रूह कांप जाए। ये लोग इंसानों की श्रेणी में आते ही नहीं ये लोग दानव हैं। जिन्होंने मात्र इंसानी चोला पहना है।

ऐसा ही हाल अवैध संबंधों के मामलों में भी होता है। मैंने देखा है कि जो व्यक्ति जितनी ईमानदारी से रिश्ता निभाता है,वह उतनी ही ज्यादा चोट खाता है। पहले कहा जाता था कि पति-पत्नी का रिश्ता सात जन्मों का होता है। पर… अब अगर आपका रिश्ता सफलतापूर्वक बिना एक-दूसरे को धोखा दिए चल गया, तब आप सच में विजेता हैं। पर क्या ऐसा हो रहा है अब? जहां देखो वहां रिश्ते में विश्वास, समर्पण और प्रेम खत्म होता जा रहा है। कुछ लोग अपनी हवस के चलते या वर्तमान रिश्ते से ऊबकर या फिर आदतन ही अपने साथी को धोखा देकर किसी और के पास चले जाते हैं। जिस व्यक्ति को उसके जीवनसाथी द्वारा ठगा जाता है, उसकी स्थिति बैंकरफ्ट व्यक्ति जैसी हो जाती है, जिसका सब कुछ बर्बाद हो गया। धोखा देने वाले अपने साथी के ही नहीं बल्कि अपने बच्चों के भी सगे नहीं होते। अपने जीवनसाथी के साथ – साथ अपने बच्चों को भी प्रताड़ित करना,किसी गैर की वजह से उन्हें स्वयं से दूर कर देना आदि काम करते हैं।
यहां मेरी एक अपील है सभी लोगों से कि अगर आप एक रिश्ते में हैं और आपके पास एक वफादार साथी है तो उसकी कद्र करें और नहीं है तो देर-सवेर ही सही पर उसे छोड़ दें।
क्योंकि एक धोखेबाज का साथ सिर्फ आपके रिश्ते को, आपके घर को और आपकी खुशियों को ही नहीं अपितु आपके जीवन को भी खा जायेगा। यही निर्णय उन महिलाओं को भी लेना चाहिए जो दहेज प्रताड़ना का शिकार हैं। क्योंकि दहेज के भूखों का पेट कभी भरता नहीं।
मैं जानती हूं कुछ लोग सोचेंगे कि कहना आसान है पर निर्णय लेना मुश्किल है। क्योंकि यहां बात ऐसे रिश्ते से निकलने की है जिसमें सबसे ज़्यादा भावनाएं,प्रेम,समर्पण और अपनापन दिया गया है। पर जब बदले में केवल दुत्कार, अपमान, हिंसा और दुख मिले, तो कोई तो बताओ कि कैसे रहें? यहां बेटी को विदा करने वाले माता-पिता से भी एक अपील है कि बेटी को इतना पराया भी न करें कि जरुरत के वक्त जब वह आपके दरवाजे खटखटाए तो वे बंद मिलें। आपकी बेटी आपकी पहले है समाज की बाद में। समाज के डर से अपनी बेटी को मरने के लिए न छोड़ें,उसका हाथ थामें और उसे बताएं कि हम हर मोड़ पर तुम्हारे साथ हैं।
यही भूमिका समाज की भी होनी चाहिए। क्योंकि मात्र कसीदे कसना, आलोचनाएं और बदनामी करना ही समाज का काम नहीं । समाज का कर्तव्य है कि हम अपने समाज में ऐसी व्यवस्था बनाएं जहां बेटी को निडर होकर अपने जीवन को फिर से पूरे आत्मविश्वास के साथ जीने का अवसर मिले, क्योंकि उस मासूम ने क्या झेला है ये सिर्फ वही जानती है। इसलिए कहते हैं कि जिस पर बीती उसने जानी।

— अंकिता जैन अवनी

अंकिता जैन 'अवनी'

लेखिका/ कवयित्री अशोकनगर मप्र jainankita251993@gmail.com