ग़ज़ल
दिल लगाते रहो संग गाते रहो।
साथ रिश्ते सभी के निभाते रहो।।
मुफ़लिसी में रहे लोग जो भी दिखें।
बात इंसानियत की बताते रहो।।
रोशनी तुम घरों में उन्हीं के करो।
रात चाहे तमस में बिताते रहो।।
राह दिखती रहे जब अँधेरा मिटे।
दीप तुम देहरी पर जलाते रहो।।
प्यार मन से किसी को अभी जो किया।
तुम उसी के लिए गीत गाते रहो।
प्यार से दीप तुमसे कहे बात ये।
मुस्कुराकर दिवाली मनाते रहो।।
हो मुसीबत खड़ी राह में भी कहीं।
देख काँटे सभी ही हटाते रहो।।
छोड़ दो भेद मन में रहे जो पले।
आज सबको गले से लगाते रहो।।
दीप ऐसे धरो रात भर जो जले।
देख बाती निरंतर बढ़ाते रहो।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’
