ग़ज़ल
आग,बादल, हवा, पानी।
ज़िन्दगी की यह कहानी।
यूं महक उठती कहीं भी,
हसरतों की रातरानी।
साजिशों से लड़ न पाती,
हो गयी पागल जवानी।
प्यास से व्याकुल हुए जो,
ढूंढते बस पानी – पानी।
जाल फेका है मछेरों ने
फंस गयी है मछली रानी।
झोपड़ी संकट से गुजरे,
पर चमकती राजधानी।
इस कदर मैली सियासत,
गद्दियां बस खानदानी।
— वाई. वेद प्रकाश
