गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आग,बादल, हवा, पानी।
ज़िन्दगी की यह कहानी।
यूं महक उठती कहीं भी,
हसरतों की रातरानी।
साजिशों से लड़ न पाती,
हो गयी पागल जवानी।
प्यास से व्याकुल हुए जो,
ढूंढते बस पानी – पानी।
जाल फेका है मछेरों ने
फंस गयी है मछली रानी।
झोपड़ी संकट से गुजरे,
पर चमकती राजधानी।
इस कदर मैली सियासत,
गद्दियां बस खानदानी।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

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