कविता

थकी हुई सी जिंदगी

बहुत मुश्किल से मिली है यह ज़िन्दगी
कैसे जियें इसको यह है अपने हाथ
दुखी रहा वो जो और की चाह करता रहा
सुखी वही रहा जो उसी में खुश रहा जो था उसके पास

ऐसे भी ज़िन्दगी में देखे कई बेचारे
थक हार कर जो बैठ गए किनारे
कामयाबी ने चूमे उनके कदम
बढ़ते रहे जो आगे बिना किसी सहारे

सुख दुख जीवन में है बहता पानी
कभी दुख कभी सुख यही तो है जिंदगानी
उलझते रहोगे तो उलझाती रहेगी
पड़ेगी उम्र फिर मुश्किल में बितानी

राह बहुत कठिन है नहीं देगा कोई साथ
छुड़ाने वाले बहुत मिलेंगे थामेगा नहीं कोई हाथ
अपनी अपनी पड़ी है सबको यहां
कोई नहीं समझेगा दूसरों के जज़्बात

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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