कहानी

कहानी – बेसन की चक्की


सुबह के छह बज रहे थे। आज रात से ही बारिश हो रही थी। गांव के सरकारी माध्यमिक स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ने वाला रामेश्वर अभी तक सो रहा था । उसकी मां सरला ने उसे आवाज दी, ‘रामा अभी तक उठा नहीं ? जल्दी से उठ स्कूल का समय हो रहा है।’
बारिश के कारण रामा के शयनकक्ष में भीनी-भीनी हवा आ रही थी। बारिश के कारण पैदा हुई हल्की ढंठ के कारण उसे बुहत अच्छी नींद आ रही थी । उसका जरा भी उठने का मन नहीं था। पर जैसे-जैसे स्कूल जाने का समय पास आ रहा था, उसकी मां अपनी आवाज तेज करती गई ।
‘रामा उठ जा, स्कूल जाने में देरी हो जाएगी।’ इस बार वह अंगड़ाई लेता उठा । सामने दीवार की घड़ी देखी, सवा छह हो रहे थे। उसे लगने लगा कि यदि स्कूल जाने में देरी हो गई तो मुख्य कक्षा शिक्षक की भरपूर डांट सुननी पड़ेगी। वे स्कूल में सबसे कड़क मिजाज थे। कक्षा शिक्षक की याद आते ही रामा जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा ।
आज उसका जन्मदिन था। मां ने उसे तिलक लगाया। उसने मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। मां ने उसकी पसंद की बेसन की चक्की रात में ही बना कर रख दी थी। मां ने चक्की से रामा का मीठा मुंह कराया । रामेश्वर ने कहा, ‘मां, मेरे दोनों मित्र राजेंद्र और सोमेंद्र के लिए भी आज टिफिन में बेसन की चक्की जरूर रख देना। मैंने उनसे कह दिया था कि कल मेरा जन्मदिन है। तुम लोगों को अपनी मां के हाथ की बेसन चक्की खिलाऊंगा । वह बहुत स्वादिष्ट बनाती हैं। लगता है, बस खाए जाओ, खाए जाओ।’ इतना सुन उनके मुंह में तो पानी आ गया।
जब रामेश्वर स्कूल जाने लगा तो उस समय वर्षा थम सी गई थी। लेकिन उसके स्कूल पहुंचने के कुछ समय बाद, फिर से वर्षा की झड़ी लग गई। इसलिए बच्चों की प्रार्थना रोज की तरह खुले में न होकर कक्षा में ही संपन्न की गई।
आज वर्षा भी अपना पूरा सावनी रंग-रूप दिखा रही थी। स्कूल के पुराने जर्जर भवन के कमरों में पानी टपकने लगा। दीवारें सीलने लगीं। छठी कक्षा के बच्चों ने अध्यापकों से कहा, ‘सर! कक्षा के अंदर भी पानी टपक रहा है और दीवारें भी बुरी तरह से गीली हो रही हैं।’ उस कक्षा के मुख्य अध्यापक ने बच्चों से यह कह कर छुटकारा पा लिया कि उस जगह बैठ जाओ, जहां पानी नहीं टपक रहा हो। बच्चों को शांत करवा कर सभी अध्यापक बरामदे में बैठ कर बातों में लग गए।
राजेंद्र व सोमेंद्र ने आज रामेश्वर को कक्षा में आते ही जन्मदिन की बधाई दी। रामेश्वर ने दोनों को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘अभी भोजनावकाश में तुम्हारा बेसन की चक्की से मुंह मीठा कराऊंगा। सुनो, मेरे मां के हाथ की चक्की बहुत स्वादिष्ट बनती है। तुम दोनों बस खाते रह जाओगे ।’
रामेश्वर ने कक्षा के गेट के पास आकर देखा। अभी भी वर्षा अपना झमाझम रूप दिखा रही थी। अभी एक ही घंटा बीता था कि कमरे की छत से छोटे कंकर और दीवारों से प्लास्टर गिरने लगे। कक्षा के दो बच्चों से अध्यापक ने कहा, ‘तुम लोग कोई मिट्टी के थोड़े ही बने हो, जो गल जाओगे । कमरे में एक ओर बैठे रहो और सावन की वर्षा का आनंद लो।’ अध्यापक ने मामले की गंभीरता समझे बिना बच्चों को एक बार और झिड़क दिया।
अभी दस-पंद्रह मिनट ही हुए थे कि कमरे की दीवारें भरभरा कर गिर पड़ी। इसी के साथ ऊपर छत की पट्टियां भी गिर पड़ी, जिसके नीचे कई बच्चे दब गए।
कमरे के गिरने की आवाज से अब सारे शिक्षक कमरे की ओर दौड़ पड़े। आवाज सुन आसपास गांव वाले भी चले आए। सब मिलकर मलबा हटाने लगे। कई बच्चे घायल हो गए और छह बच्चे इस दुनिया को अलविदा कह गए। कमरे में हर तरफ खून फैला हुआ था। जिस कक्षा में बच्चों का भविष्य बनना था वहीं, आज कई ने अंतिम सांस ली।
जो बच्चे घायल हुए, और जिनकी मृत्यु हुई उनके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। परिजनों में रामेश्वर की मां भी थी। लोगों ने ढाढस बंधाते हुए उनके प्रति सहानुभूति और संवेदना प्रकट की। सरला का एकमात्र पुत्र रामेश्वर और उसके दोनों मित्र राजेंद्र और सोमेंद्र भी घायल होकर बेसुध पड़े थे। उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया । रामेश्वर का टिफिन खुला पड़ा था, और बेसन की चक्की दूर -दूर तक फैली हुई थी ।
तीनों मित्रों का अस्पताल में अच्छे से इलाज हो रहा था। उन्हें होश आ गया था। डाक्टर ने परिजनों से कहा कि चिंता न करें। दो-तीन दिन बाद इनकी छुट्टी हो जाएगी।
इस हादसे के बाद भी रामेश्वर की मां सरला ने ईश्वर का धन्यवाद दिया कि उसने उसके एकमात्र पुत्र को बचा लिया । अस्पताल में भर्ती वह अपने पुत्र को याद करती, आंसू बहाती रहती। उसको रामेश्वर की स्कूल जाते समय आखिरी बातें याद आती रहीं। ‘मां मेरे टिफिन में बेसन की चक्की रख देना। अपने जन्मदिन पर मित्रों का मीठा मुंह कराऊंगा।’
अत्यधिक रोने के कारण सरला अवसाद में चली गई थी। बेटे और उसके दोस्तों की देखभाल के लिए अवसाद से उबरना जरूरी था । सरला ने रामेश्वर का मित्रों के प्रति स्नेह को ध्यान में रखते हुए सोचा कि जब वे स्वस्थ होकर लौटेंगे, तो तीनों को भोजन के साथ भरपेट बेसन की चक्की खिलाएगी। वह अब चक्की बनाने का इंतजार कर रही थी ।

— विजय गर्ग

*विजय गर्ग

शैक्षिक स्तंभकार, मलोट

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