कविता : काश…
काश… तुम्हें मालूम हो सकता, कि तुम मेरे लिए क्या हो, सुकून-ए-रूह हो मेरा, दिल-ए-बेचैन की दवा हो, बताऊँ मैं तुम्हें
Read Moreकाश… तुम्हें मालूम हो सकता, कि तुम मेरे लिए क्या हो, सुकून-ए-रूह हो मेरा, दिल-ए-बेचैन की दवा हो, बताऊँ मैं तुम्हें
Read Moreदिल चाहता है मेरा भी इस कलम से मैं श्रीराम लिखूँ रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
Read Moreतुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ सिंह की सवार बनकर रंगों की फुहार बनकर पुष्पों की बहार बनकर सुहागन का
Read Moreथोड़ी खुद्दार, थोड़ी खुदमुख्तार है, ये चालीस पार की औरत, लेकिन उसकी खुदमुख्तारी में भी, होता है जिम्मेदारी का एहसास,
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