ग़ज़ल
जिसका सूरज तू हो ऐसी सहर की क्या बात है, साथ तेरे गुज़रे जो उस सफर की क्या बात है
Read Moreबिना रीढ़ की हड्डी के किसी आदमी जैसी होती है कट्टरता के बिना देशभक्ति ही कैसी होती है गंगा-जमनी तहजीबों
Read Moreथक गया हूँ सुन-सुनकर कि ये त्योहार ना मनाओ, वो त्योहार ना मनाओ। दीवाली में पटाखे मत चलाओ, प्रदूषण होता
Read Moreआओ सारे खुशी मनाएँ मिलकर थोड़ा हँसें-हसाएँ मिटा के दिल की रंजिश सारी दुश्मन को भी गले लगाएँ कटुता में
Read Moreउम्मीद की किरण से ही होता है सवेरा उम्मीद अगर ना हो छा जाता है अँधेरा उम्मीद ही है सूरज,
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