सनातन संस्कृति
समय के साथ हम भी कितने सयाने हो गए हैं, वेद पुराण गीता उपनिषद घोलकर हम पी गए हैं। भूल
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Read Moreमजाक अच्छा है कि धरती भी प्यासी है, शायद यही सही भी है क्योंकि धरती रुंआसी सी है। छोड़ो इन
Read Moreयह हमारी सोच दर्शाता है हमारे वैचारिक भाव उजागर करता है, हमारे चिंतन का फलक कितना बड़ा है यह दुनिया
Read Moreआइए! इस नश्वर शरीर का अंतिम उपयोग करते हैं, नेत्रदान,देहदान करते हैं। इस संसार,समाज ने हमें क्या कुछ नहीं दिया,
Read Moreएक टीस मन को सदा कचोटती है, बेचैन करती चुभती है शूल सी। नहीं पता ऐसा क्यों है? न कोई
Read Moreलौट रहे थे जब राम तब लक्ष्मण को रास्ते में देखा, तत्क्षण मन में आशंकाओं के घन चेहरे पर छाई
Read Moreयह कैसी विडम्बना है कि हम बड़े मुगालते में रहते हैं, बोते पेड़ बबूल का, आम की आस रखते हैं।
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