संवाद…
जरूरी नहीं तन्हाईयों का होना भीड़ में भी संवाद करता है मन अपनेआप से हर पल एक मौन स्वर शब्द
Read Moreहदें निर्धारित हैं नदी की, नहर की, तालाब व समंदर की, और स्त्री-पुरुष की भी। मगर जब टूटती हैं हदें
Read Moreअरमानों की भट्टी हर पल, हरएक के दिल में जलती है। चाहे सब कुछ मिल जाता है; फिर भी कुछ
Read Moreहां पाला है सांपों को मैंने, दंश भी मैंने झैले हैं। मेरी ही छाती पर हरदम क्यों दुश्मन के मैले
Read Moreप्यार हवा जैसा ही तो होता है , चाहते हैं जिसे छूना हर पल । प्यार आँसूं की फुहार है
Read More“कैसा घर कैसी पहचान” वो गाँव का दशहरा मोटू की दुकान मिठाई तो बहुत है सजावट सहित है पर कहाँ
Read Moreस्वयं का होना पर्याप्त नहीं है क्यों हैं किसके लिए हैं इसमें नैराश्य का भाव है अकेलेपन का अहसास है,
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