हमारे घर की बाईं तरफ परतापो बुआ का मकान था तो दाईं ओर ताऊ नन्द सिंह का मकान था , नन्द सिंह के मकान के बिलकुल सामने ताऊ रतन सिंह का मकान था । रतन सिंह के मकान की दुसरी तरफ से मुसलमानों का मुहल्ला शुरू हो जाता था। इन लोगों की अपनी एक मस्जिद […]
संस्मरण
नहीं रहे बालसाहित्य के पुरोधा दादा राष्ट्रबंधु – एक संस्मरण और श्रद्धांजलि
लगता है जैसे कल की ही बात हो | 27 दिसंबर 14 को राजसमंद बालसाहित्य समागम मे राष्ट्रबंधु जी पधारे थे | बड़ी आत्मीयता से मिले –पहली बार | तब ये नहीं पता था कि ये आखिरी बार भी है | मैंने पैर छूए , उन्होने जी भर कर आशीर्वाद दिया | वहाँ तीन दिनों […]
‘जय विजय’ बधाई, शुभकामनाएं गुरमैल भाई
अनेक महान कृत्तिकारों की श्रेष्ठ विविध विधाओं से संपोषित तथा एक महान व्यक्तित्व व कृत्तिकार गुरमेल भमरा पर पूरे पृष्ठ से सुसज्जित जय विजय का मार्च एक अनमोल विशेषांक लगा. वास्तव में जिस भी रचना में लेखक अपना दिल निकालकर रख देता है, वह फूल की तरह अपने आप महक जाती है, उसके लिए कोई […]
मेरी कहानी – 4
मेरे बचपन के दोस्तों की लिस्ट तो बहुत बड़ी है लेकिन फिलहाल मदन लाल जिस को मद्दी बोलते थे और तरसेम का ज़िकर ही करूँगा। मद्दी का घर हमारे घर के बिलकुल सामने था। मद्दी के पिता जी मलावा राम तीन भाई थे और मलावा राम के दो बड़े भाई थे बाबू राम और रखा राम। सिर्फ मलावा राम […]
मेरी कहानी – 3
देहरादून की पहली याद तो लिख चुका हूँ लेकिन अपने गाँव राणी पुर का छोटा सा इतिहास भी लिखना चाहूंगा। जितने भी गाँव शहर या देश होते हैं उन को नाम देने का कोई कारण होता है जो अक्सर सभी भूल जाते हैं और या हमें पता ही नहीं होता। दिल्ली हमारे देश की राजधानी है लेकिन […]
“बचपन “
“बचपन” को याद कर के अपना वर्तमान नही बिगाड़ना चाहती । बहुत ही मुश्किल भरा बचपन था मेरा। सात बच्चों को पालना पिताजी के लिए बड़ी मुसीबत भरा काम था। उस पर आय सीमित। पिताजी बेकरी में हेल्पर का काम करते थे। माँ आस-पास के घरो में खाना बनाती थी। फिर भी दो वक़्त की […]
मेरी कहानी – 2
मेरी माँ अक्सर बहुत बातें किया करती थी। वोह स्कूल तो गई नहीं थी लेकिन थोड़ी सी पंजाबी लिखना पढना जानती थी और मज़े की बात यह कि वोह कुछ कुछ हारमोनियम भी बजाना जानती थी. शायद यह उस ने मेरे पिता जी से सीखा होगा क्योंकि पिता जी गुरदुआरे में कीर्तन किया करते थे […]
खट्टी-मीठी इमली
मैं जब छोटी थी मुझे इमली, बेर, जामुन खाने का बड़ा शौक था। लेकिन उन्हें खाते ही खांसी हो जाती।गले से ऐसी आवाज निकलती मानो कुत्ता भौंक रहा हो | मुझे खांसता देख पिताजी को बहुत दुःख होता मानो उनकी दुखती रग को किसी ने दबा दिया हो। वे साँस के मरीज थे। हमेशा उनके दिमाग में खौफ की खिचड़ी पकती रहती […]
मेरी कहानी- 1
कभी कभी सोचता हूँ कि अपनी कहानी लिखूं लेकिन कैसे, कभी समझ ही नहीं पाया … यह पढ़कर आप बहुत हैरान होंगे कि मेरी सही जनम तिथि मुझे तो क्या मालूम होगी, मेरे घर वालों को भी पता नहीं, यहाँ तक कि मेरी माँ को भी नहीं. मेरा जनम राणी गाँव जो पंजाब के कपूरथला […]
संस्मरण — “मैं ही हूँ भावना”
ट्रेन रवाना होने वाली थी। पतिदेव ने रिजर्व सीट को ढूंढा। बेटा साथ में था। बेटियों का बेस्ट ऑफ लक कहना साथ था। पतिदेव भी साथ आने की बहुत जिद ठाने थे मगर मैं ही उनको रोके रही। उनका बहुत जरूरी केस था जिसकी आखिरी जिरह करनी थी। यूं भी मैं उनको अधिक परेशान नहीं देख पाती…कितना […]