लछमी अपने घर में बैठी सोच रही थी क़ि आखिर माँ ने उस का नाम लछमी किया सोच कर रख दिया था। सारी उमर विधवा की तरह और गरीबी में गुज़ार दी , उस की बेटी लता चार वर्ष की थी जब उस का पति संजीव मामूली झगडे के कारण उसे छोड़ कर पता नहीं […]
लघुकथा
बेटी तो होनी चाहिए….
बेटी तो होनी चाहिए ……. चलो माँ मै तुम्हे लेने आया हूँ, बरसों बाद उसे किसी ने माँ कहा| विश्वास ही नही हुआ कानो पर ! टूटी डंडी का डोरी से जोड़कर लगाने लायक चश्मा लगा कर देखा तो मदिया था | गोमती देवी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नही हुआ| जबसे मदिया के […]
चेहरे की लकीर
दीपावली को अब चार ही दिन बाकी रह गये थे। पिंकू को आज उसके दादा जी अपने साथ बाजार ले गये थे। पूरा बाजार त्योहारी सीजन के कारण सजा हुआ था। जूते,कपड़े,पटाखे और तरह- तरह के पकवान और भी बहुत कुछ था। पर पिंकू को कुछ भी लेने का मन नही हुआ। दादा जी बराबर […]
जलती हुई मोमबत्ती
“शरीर जल (ख़त्म हो) रहा है, लेकिन आत्मा तो अमर है | मोमबत्ती की तरह मैं भले काल कवलित हो गया हूँ, पर इस लौ की भांति तुम सब की आत्माओं में बसा हूँ |” जब सरकारी स्कूल में गाँधी जयंती पर हिंदी के प्राध्यापक महोदय ने मोमबत्ती की ओर इशारा करके कहा तो रूचि भयभीत हो गयी | दादी से आत्माओं […]
शौक
कृष्ण बचपन में पढने के साथ-साथ मूर्तिकला में भी निपुण था | उसके मम्मी-पापा उसके इस शौक को पढाई में बाधा मानते थे | लेकिन जब स्कूल में मूर्तिकला की प्रतियोगिता जो कि जिला स्तर की थी, उसमे कृष्ण ने भाग लिया और उसकी बनाई राधा कृष्ण की मूर्ति ने प्रथम स्थान पाया | स्कूल […]
अन्तर्मन की आवाज
मुझे बहुत हैरानी हुई पढे लिखे लोगो की मानसिकता देख।वो भीख नही मांग रही थी बेलून खरीदने को कह रही थी और इस सभ्य समाज के सभ्य दम्पत्ति जोङे ने दुत्कार कर भगा दिया उसे।दया भी नही आई उस नन्ही सी बच्ची को खिझते हुए…खुद को पढे लिखे समझदार समझते है…?? कहाँ जाती है समझदारी […]
” बुढ़ापे की लाठी “
दिसंबर महीने की बर्फीली सर्दी में, सड़क के किनारे एक बुज़ुर्ग औरत, जिसकी उम्र ८० साल के लगभग थी, लकड़ी की छड़ी के सहारे काफी देर से सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी |उसने हलके भूरे रंग का कोट पहन रखा था और क्रीम रंग के शॉल से सर ढक रखा था । […]
~नन्ही चिरैया~
“भैया आंखे बंद कर हँसते हो तो कितने अच्छे लगते हो|” गद्गुदी करती हुई परी बोली भाई खिलखिला पड़ा फिर जोर से| परी भी उन्मुक्त हंसी हंसती रही| दोनों हँसते-हँसते कहा से कहा आ गये थे| “अरे पापा वह आंटी का घर तो पीछे रह गया|” “उन्होंने दस बजे तक बुलाया था, आज कन्या खिलाएगी […]
ख़ुशी
‘सूरज,की पहली किरण जैसे ही धरती पर अपनी लालिमा बिछाती है…नीरू रोज सुबह सूरज निकलने से पहले ही उठ जाती थी…और सूरज का स्वागत करती थी | ये ही वो वक़्त था जिसे वो अपने लिये जीती थी |जैसे ही सूरज की किरण धरती पर आती है ,वो उन्हें अपनी बांहों में समेट लेती और […]
लघुकथा : दान – पुण्य
‘कमला तुम अब दस दिन बाद ही काम पर आना, हम लोग तीर्थ यात्रा के लिए जा रहे है |’ मालकिन का फरमान सुनकर कमला का कलेजा धक से कांपा, उसने तो सोचा था आज जाते ही पगार माँग लुंगी | घर में अन्न का एक दाना नही , धान लेकर जाउंगी | पति को […]