1 मेरा मन तेरा घर रहना आजीवन चिंता ना कोई डर 2 रखना सच से वास्ता जीतो या हारो जग में पा लो रास्ता 3 एक अच्छा हो पाठक छन्दों की रचना बनता लेखक साधक 4 लौटा कर दो बचपन हो मनचाहा सब होने ना दूँ अनबन किशोर कुमार खोरेन्द्र
क्षणिका
क्षणिकाएँ ….. होली की ठिठोली
1 झूमो झनको रंग पानी सा मिलकर भूलें गिले होकर गीले झगड़ना या झरना बन बहना एक दूजे में झलको 2 स्वप्न का धनक निखरे गैर बिराना मौन ना बचे पुताई हर दिल हर चेहरे हो प्यार खरीदार सारे बचे चहक चहुँ ओर बिखरे 3 जर्द धरा चेहरे पे दर्द किसने क्यूँ फैलाई यादों की […]
क्षणिकाएँ
अभिलाषाएँ !! पतंग सी उड़ती चीरती मन क्षितिज गिरती पड़ती मरती न कभी नित नए रूप में धरना दिए बैठती रहे सदैव अपूर्ण पूर्णता को व्याकुल अतृप्त अभिलाषाएँ धूप !! जो थी व्याकुल झरोखे दे दस्तक झिर्रियों से झाँकती ख़ामोश सी भित्ति से टकराव खुद ब खुद राह बदल, मिलता तो क्या ? बस अस्तित्वहीनता […]