गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : सब सिस्टम का रोना रोते

सुबह हुयी और बोर हो गए जीवन में अब सार नहीं है रिश्तें अपना मूल्य खो रहे अपनों में वो

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