मुक्तक/दोहा

चौपाई=चन्द्र बदन

चौपाई = प्रत्येक चरण मे १६-१६ मात्राएँ चौपाई=चन्द्र बदन ==================== चन्द्र बदन मम लागत कैसे, जिमि माणिक फन विषधर जैसे/१ सावन मेघ घटा घनघोरा , विरहन मन चितवत चहुओरा/२ काम बान उरलागे कैसे, तपत भूमि ज्येष्ठ मे जैसे/३ कोकिल बोल काक सम लागे, बिनु प्रियतम जल कंटक लागे/४ अवनि भरे जल विपुल अपारा, जरत अनल […]

मुक्तक/दोहा

दोहा

दोहा पहले -तीसरे चरण में १३ मात्राएँ ,[6+4+1+2,/,3+3+4+1+2] दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ[6+4+1//3+3+2+2+1] फूल बिना महिमा घटी, चंदन कहत, जलजात। आकुल मन रजनी चली , रवि शशि बिनु दिन-रात।। [1] मायामय जग को कहे, रवि सम्मुख अँधियार। कामी कंठ हरिगुन कहे, समझ समय सुविचार।। [२] मलयागिरि महिमा कहे , राज सकल गुण खानि। बहत पवन […]

मुक्तक/दोहा

रामाँ रहीम बन के…

झाँका है दूर नभ से रामाँ रहीम बन के निकला है आज चन्दा फिर सज के और संवर के भूलो गमो के नगमे जी भरके मुस्कुराओ कर लो इबादते तुम अरमान पूरे मन के ।  

मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक

भ्रांतियों में जी रहा है आदमी जहर को यूँ पी रहा है आदमी फंस गया पाखंडियों के जाल में झूठ का क़ैदी रहा है आदमी   सत्य का पालक यहाँ कोई नहीं न्याय संरक्षक रहा कोई नहीं आम जन है भटकता संसार में मार्गदर्शक मिल रहा कोई नहीं   — विजय कुमार सिंघल

मुक्तक/दोहा

मुक्तक : मुहब्बत गुनगुनायेंगे

छुपा आगोश में अपने इबादत भूल जायेंगे हमारा साथ दो गर तुम मुहब्बत गुनगुनायेंगे न जाना भूल बैठे हम सितारों को बिछा पथ मे तुम्हारे दिल में घर हम इक मुहब्बत का बनायेंगे

मुक्तक/दोहा

दोहे : रूप तुम्हारा देखकर…

अलियों – कलियों में हुई , कुछ ऐसी तकरार । बूँद – बूँद में घुल रही ,मधुरिम प्रेम फुहार ।। प्रीत-पपीहा गा रहा , मीठे-मीठे राग । सावन के झूले पड़े ,सुलगी विरही आग ।। नन्हा पादप कह रहा , सुन रे पेड़ चिनार । बरस जाय मेघा अगर , दे दो इक दीनार ।। […]

मुक्तक/दोहा

मुक्तक

सुहाना नेह का रिश्ता , इसे दिल में बसा लूँ मैं तुम्हारा आसरा पाकर, जहाँ सारा भुला दूँ मैं तुम्हीं हो आरजू मेरी , तुम्हीं मेरी इबादत हो मिलन के मिल सके दो पल, उन्हें कविता बना लूँ मैं — शान्ति पुरोहित 

मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक (युवाओं के लिए)

परिष्कृत कर लो अपने पुराने शब्दकोष को कोष से बाहर करो सब नकारात्मक शब्दों को “असमर्थ,अयोग्य हूँ” का सोच है प्रगति के बाधक जड़ न जमने दो मन में कभी, इन विचारों को | XXXXXX हर इंसान में “डर” है दो धारी तलवार यही उत्पन्न करता है नकारात्मक विचार कभी-कभी इंसान को रोकता है भटकन […]