[1] माँ के हाथों की रोटी बड़ी प्यारी लगती है, माँ की मुस्कुराहट भी फुलवारी लगती है/ उपवन का पत्ता-पत्ता गाता प्रेम का गीत, माँ तेरा आँचल ममता की अटारी लगती है/ [2] कोई धन को चुराते हैं , कोई मन को चुराते हैं/ ए बड़े कंगाल हैं आशिक , गजब कविता चुराते हैं/ [3] […]
मुक्तक/दोहा
दोहे
फिर आँगन में नाचती , बूंदों संग उमंग । विरही मन प्यासा रहा, पिया न मेरे संग ।। बदरा आज उदास है , बरसत हैं ये नैन । पिया आस में आज भी , लम्बी होती रैन ।। सावन लेकर आ गया , शुभ संदेसा आज । पैरों में थिरकन हुई, बूंद बनी है साज़ […]
एक मुक्तक
दर्द ऐ गम जो छुपा लिया होता होंठो पर ताला लगा लिया होता गुलज़ार होता अपना भी दामन खता ऐ इश्क जो ना किया होता । — गुंजन अग्रवाल
साथ-साथ
अब तुम्हारे साथ रहने को दिल करता है, साथ में रहकर हँसने को दिल करता है, जब दूर रहना था हम दोनों को यहां पर, तो हम एक दूसरे के साथ क्यों रहता है रमेश कुमार सिंह /२४-०२-२०१५
दोहों में पिता
पिता की ममता का न , है कोई भी छोर . नहीं है ऐसा जग में , उन -सा कोई और .१ ईश का है रूप पिता , दें संतति आकार . धरा , नभ ,- सा उदार बन , करें कुल – जग उध्दार . २ गोदी में खिलाकर के, दें लाड़ – […]
कुछ दोहे
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर। बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।1। — माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल। कौन चुका पाया भला, ममता का है मोल।2। — भक्ति,नीति अरु रीति, की विमल त्रिवेणी होय। कालजयी मानस सरिख , ग्रंथ न दूजा कोय।3। — जिनको निज अपराध का, […]
चतुष्पदी
माँ का दूध कलंकित कर , नारी पर शक्ति दिखाते हैं ऐसे नापाक नामर्द जगत में, कैसे मुख दिखलाते हैं पुरुषत्व कभी न शोषण करता, प्रेम का पाठ पढ़ाता है क्यारी-क्यारी सींच सींच कर, गुलशन रोज सजाता है — राजकिशोर मिश्र राज
दोहा-मुक्तक
दोहा-मुक्तक मूरख जनता है नहीं, अब वो है चालाक, नेता जी की नियत को, वो लेती है झाँक।। जाकर के मतदान में, अपना देती वोट। बढ़ते भ्रष्टाचार पर, कर देती है चोट।। — अमन चाँदपुरी
दो मुक्तक
ठंडी बयार मन को मेरे गुदगुदा गई झुलसे हुए बदन को थोड़ा सरसरा गई काली घटा को प्यार से दामन में समेटे हौले से इक फुहार मुझे थपथपा गई पंच तत्व में सूर्य रश्मि ने ऊर्जा का संचार किया चित्र कार ने नवल चित्र का रंगों से श्रृंगार किया शस्य श्यामला माँ ने भरी बलायें […]
मुक्तक
सुबह साँझ के फेर में जल गयी देखो छाँव धूल उड़ाते फिर रहे है हवा के नाज़ुक पाँव पीपल बरगद काट दिए बनाये ऊँचे मकान हर आँगन आस लगाते मिल जाए शीतल ठाँव !