ख़ाक हुई मंजिल संदली-सी…!
आसमान से गिरा परिंदा, देख बद्नीयत नर की, ख़ाक हुई मंजिल संदली-सी, लुटते हुए सफर की…! पंछी इस अनजान डगर
Read Moreआसमान से गिरा परिंदा, देख बद्नीयत नर की, ख़ाक हुई मंजिल संदली-सी, लुटते हुए सफर की…! पंछी इस अनजान डगर
Read Moreमाँ मेरा मन चाहता है सौन्दर्य सृष्टि का देखना आने दो इस जग में मुझको खुशियाँ दूंगी मैं भी तुझको
Read Moreकुछ अधूरे ख्वाब , आजकल मुँह चिढ़ाने लगे हैं ! हार मानने वाले हैं कहाँ, नित नये हौंसले हम जगाने
Read Moreसत्य की राह पर चलती है किसी से वह न डरती है अनजाने चेहरों के बीच जोश में जब वह
Read Moreउसे सरोकार नहीं होता कश्मीर में बेघर हुए हिन्दुओ के दर्द से वो तो बस छटपटाती है अफज़ल के नाम
Read Moreकुछ तो नूतन करो यार ! गोमती की जल धार पुकार रही , हर पल इसको साफ रखो , नालों
Read Moreकितनी गहराई से भेदती हैं मां की आंखें मानो हो खुर्द्बीन लाख छुपाओ छुपती नहीं माँ पढ लेती है हमारे दुख
Read Moreअपनी अपनी देह कों छोड़ रहते मै और तुम एक दूसरे के मन मे हो आत्म -विभोर बीच मे अनाम
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