कविता

गीत-****पूरी कहो कहानी****

गीत- ****पूरी कहो कहानी**** कुछ कहता है चित्र तुम्हारा कुछ तुम कहो ज़ुबानी। कुछ न छिपाकर रक्खो दिल में पूरी कहो कहानी।। गम को अगर छिपाओगे तो वो तुमको गम देगा। जब तक नहीं कहोगे भीतर ही भीतर काटेगा। इसीलिए कह दो तुम हमसे करो न आनाकानी। कुछ न छिपाकर रक्खो दिल में पूरी कहो […]

कविता

पिता का संघर्ष

वो टूटता भी है कई भावों में बड़ा होना अधिकार था घर में घर का भी अधिकार बड़ा था उस पर दूसरी ओर विवशता बड़े का बड़ा होना भी कर्ज का बोझ भी बड़े होने का बड़ा ही होता है स्ट्रीट लाइट जहाँ गाँव भर को रोशन कर बड़े होने का दर्जा देती पूरी पंचायत […]

कविता

रिश्ता

माँ बेटे का रिश्ता होता है अनमोल रहता है अहसास माँ को अपने बेटे के दुःख दर्द का बेटा चाहे नालायक हो जाये माँ तब देती है दुआ, माँ होती है अनमोल क्यों नहीं समझ पाता है बेटा उसका क्यों सताता है, लड़ता है उससे क्यों नहीं समझता उसके दिल का हाल पर माँ तो माँ […]

कविता

“अपेक्षा ही उपेक्षा की वजह हैं”

हां!मैं भी समझती हूं,..“अपेक्षा ही उपेक्षा की वजह हैं”पर तुमने कभी ये सोचा  अपेक्षा की वजह क्या है??? शायद तुम्हे याद नही हमारे बीच एक रिश्ता है, रिश्ता कोई भी हो,. हर रिश्ते का होता एक दायरा,.. दायरे में होते हैं कुछ अधिकार, और अगर अधिकार में प्रेम शामिल हो,.. तो पनपती है अपेक्षाएं,.. तुम्हे […]

कविता

वो बेटियाँ कहाँ से लाऊँ ?

आश्वासन दे सके वो अल्फाज कहाँ से लाऊँ लिखने से भला क्या होगा उस माँ की दो बेटियाँ कहाँ से लाऊँ कानून के नुमाइन्दे भी इस कद्र वहशी हो गये अब ऐसे में बचा सके नारी की अस्मिता वो पुरुष कहाँ से लाऊँ बंद करिये अब सांत्वना देना जो बीत गया वो बीत ही जाता […]

कविता

अनिच्छा से सृजित

अनिच्छा से सृजित गर्भ में पनपा कोई भ्रूण महज़ एक रक्त का लोथरा रहा होगा जब प्रमाणित कर कुछ पैसों से अजश्र रक्त-श्राव कराकर उसकी बेचैन आँखों में झाँक कर बोला गया होगा सॉरी माँ बहा दी होगी – उस अजन्मे को किसी गंदे नाले में वो मिन्नतों से नहीं था उसके आने की कोई […]

कविता

रिश्ता

हर एक सूरत मुझे अब तो तेरी सुरत सी दिखती है देखता हूँ जिधर भी मैं तेरी मूरत सी दिखती है कभी दिंन के उजालों में रात के अंधेरों में बरसती बारिश की बूंदों में बसंत की बहारों में ना जाने क्या रिश्ता है , तुझसे के अब हर पल मुझको तेरी ज़रूरत सी दिखती […]

कविता

कविता – ठहरा प्रवाह

आधुनिक युग में नदियाँ भी आ गयी हैं सीमाओं की चपेट में जरुरतमन्दों ने क्यूँ कर रोक दिया है प्रवाह नदी का प्रकृति के विरुद्ध झेलती अत्याचार ये नदियाँ सूखकर इतिहास के पन्नों पर दर्ज करवाती रही हैं मशीनी मानव का अंधकारमयी भविष्य एक दिन इन्हीं के सूखे किनारे बैठ हम तलाश करेंगे एक चारागाह […]

कविता

शौकीन

दर्द में डूबी हुई एक तस्वीर हूँ मैं ! टूटी हुई है हर एक कड़ी वो ज़ंजीर हूँ मैं ! आशाओं की डाल से टूटा एक पत्ता तेरे प्यार के दर्द का शौकीन हूँ मैं ! मंज़िल से भटका ठोकरें खाता फिरता हूँ परछाईयों के आगोश में तुझे ढूढ़ने का शौकीन हूँ मैं ! तुम्हारा […]