रोज सवेरे आता सूरज धूप सुनहली लाता सूरज छुट्टी मिलती कभी न इसको दिन भर दौड़ लगाता सूरज । जाड़े के दिन भाता सूरज गरमी में झुलसाता सूरज पड़ती है जब रिमझिम बारिश बादल में छुप जाता सूरज । ठीक समय से आता सूरज अंबर पर मुस्काता सूरज देकर अपनी किरणें सबको कभी […]
बाल कविता
कम्प्यूटर
बड़े काम का है कम्प्यूटर करता है यह काम हमेशा सब कुछ जल्दी से निपटाता चलता है अविराम हमेशा | जो भी इसमें तुम ढूँढोगे पाओगे सब इसके अंदर भैया करते गणित इसी पर मैं खेला करती हूँ दिनभर | पापा लेकर दफ्तर जायें मम्मी को भी गीत सुनाये इधर-उधर की सारी खबरें […]
बच्चों को हरषाते बादल
उमड़-घुमड़ कर आते बादल पेड़ों को नहलाते बादल ठंडा-ठंडा पानी देकर बच्चों को हरषाते बादल । पूरे अंबर में छा जाते पानी इतना कैसे लाते ? अपने हाथों ताल-तलैया पलभर में भर जाते बादल | सड़कें जब गरमी से जलतीं तेज हवाएं हर पल चलतीं सूरज की ऎसी करनी पर गुस्से से गुर्राते […]
बाल कविता : होली का मौसम
सूरज बोला नीलगगन से, धरती आज सजी कितनी है। लाल, हरे, पीले रंगों से, लगती स्वर्गलोक जितनी है।। खेतों में चूनर सी फैली, पीली सरसों इठलाती है। लाल गुलाबों की क्यारी भी, मोहक खुशबू बिखराती है।। रंग बिरंगे रंग बिखरकर, इन्द्रधनुष से बन जाते हैं। रंग से खिले हुए चेहरों संग, हृदयन्तर भी खिल जाते […]
मुन्नी चलती डगमग डगमग
मुन्नी चलती डगमग-डगमग नन्हे-नन्हे क़दम बढ़ाकर मुन्नी चलती डगमग-डगमग। हंसती है तो घर, खुशियों से करने लगता जगमग जगमग। मम्मी की आवाज़ सुने तो झटपट उनकी ओर लपकती पापा से बातें करती तो कम से कम सौ बार अटकती। भैया जब टॉफ़ी दिखलाता तो खुश होकर चहक पड़े वह गुस्सा होने पर, टपकाने लगती आंसू […]
बाल गीत – दुकान
जंगल में चूहे ने खोली, अपनी एक दुकान हल्दी, धनिया, मिर्च, मसाला, घर का सब सामान चीटी शक्कर लेती उससे , हाथी लेता केला पूरे पैसे सब देते थे, करते नहीं झमेला पर बिल्ली ने कर रखा था, उसका चैन हराम लेती थी सामान सभी पर, देती कभी न दाम — परशुराम शुक्ल
कविता – “ चलो स्कूल ले जायें सबको ”
खुद भी जागें व जगाएं सबको , चलो स्कूल ले जायें सबको | जिनका बचपन पड़ा है गलियों में , खुली हवा में घुमायें सबको | अनार अ से हुआ ,इमली होती है इ से किताब देके पहला पाठ पढ़ायें सबको | गरीब है जो पड़े रह गये मजबूरी में , पकड़ […]
बालगीत – “अपना बचपन अपनी दुनिया”
किसी की टॉफी कोई छीने किसी की चोटी कोई खींचे , हँसता मुन्ना , रोती मुनिया अपना बचपन अपनी दुनिया | अटक – अटक कर रटे ककहरा समझ नही आता अलजबरा , लिये हाथ मे पटरी – गुनिया अपना बचपन अपनी दुनिया | कभी तो रोते , कभी हैं गाते बात – बात हँसते – […]
मम्मी ऐसा क्यों होता है
(आज की दुनिया में हर कोई बिज़ी है,ऐसे में दादी की गोद में ही सुकून मिलता है ये कविता संयुक्त परिवार के महत्त्व को भी दर्शाती है) मम्मी ऐसा क्यों होता है छोटा बच्चा क्यों रोता है बोली मम्मी ,वो छोटा है इसीलिए तो रोता है मम्मी ऐसा क्यों होता है सूरज उगता फिर ढलता […]
कौआ बोला
कौआ बोला कॉँव कॉँव क्या में घर के अंदर आऊं ? बोले पापा नहीं नहीं जाओ किसी और की ठाँव इधर उधर तुम फिरते हो बस कॉँव कॉँव ही करते हो जाओ जाकर कुछ काम करो मत इतना आराम करो गंदी गंदी चीज़ें सारी तुमको लगती हैं प्यारी चतुर चालाक सयाने हो तुम कब किसकी माने हो […]