मोदी जी के मंत्रिमण्डल के पदों पर सट्टेबाजी !
हमारा ऐसा अनुमान है कि यह पहली बार हुआ है जब कोई प्रधान मंत्री किसको कौन सा पद देंगे, उस पर सट्टेबाज़ सट्टा लगाते हों, उसका जिक्र व्यापकता से देश के अनेक टी वी चैनल करते हों ! क्या मोदी जी के वरिष्ठ भक्तों को इसकी जानकारी नही मिली है? क्या उन सट्टेबाजो और उसको व्यापकता देने वाले टी वी चैनलों पर सख्ती की जायेगी ?
प्रधानमंत्री का यह विशेषाधिकार होता है किसको कौन सा पद दिया जाये, जनता अनुमान जरूर लगा सकती है, लेकिन कोई शातिर उस पर व्यापकता से कई करोड़ का सट्टा लगाये यह दुर्भाग्य की बात ही कही जाएगी.
मोदी जी को बहुमत मिले हुये 10 दिन हो चुके हैं, इसके बाद भी शपथ लेने मे इतना विलंब क्यों? 4-5 दिन पहले भी शपथ ली जा सकती थी !
संघ उनका जीवन रहा है फिर भी सादगी के बजाये शपथ ग्रहण भव्यता ले रहा है! कई करोड़ रुपये का खर्च उसमें जरूर हो जायेगा !
4 दिन से मंत्रिमण्डल में शामिल करने वालो की सूची बन रही है, फिर भी वह अब तक पूर्ण नहीं हो सकी है. नेताओं का, मिलने वालों का दौर बदस्तूर जारी है! वरिष्ठ -कनिष्ठ नेताओ को संतोष नही हो पा रहा है !
आज मोदी जी प्रात: गाँधी जी को श्रद्धांजलि देने राजघाट गये, कुछ पुष्प के भंडार अर्पित कर दिये ! बस हो गयी गाँधी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि ? यह श्रद्धांजलि थी या एक जनता को दिखाने वाला पाखंड ?
हमारी समझ मे तो गाँधी जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि उसको कही जा सकती है कि राजघाट जाने के बजाये देश में अति शीघ्र शराब व अन्य नशा बंद हो. उसके उपाय खोजे जाये, जिससे कारण कई करोड़ गरीब परिवारों का आर्थिक बजट व स्वास्थ्य खतरे में पड जाता है !
देश मे कई करोड़ ग्रामीण बेरोजगार चरखे से जुड़े, गो हत्या बंद हो, मांसाहार का प्रचलन अपवाद के तौर पर लेश मात्र रहे, कम से कम सभी राजनैतिक दलो के सदस्य, कार्यकर्ता खादी अपनाये, ऐसा माहौल सृजन किया जाये, न कि राजघाट में पुष्प अर्पित करने बाद गाँधी जी को भुला दिया जाये?
मोदी जी का सारा जीवन संघ मय है, फिर भी वह हेडगेवार जी, गोलवलकर जी [गुरु जी] , बाला साहब देवरस जी, रज्जु भैया जी आदि की प्रतिमा /चित्र आदि मे पुष्प अर्पित करने नहीं गये !, जबकि यह सब भी केशवकुंज झंडेवालन दिल्ली में स्थित भी है ! तभी हमको राजघाट के कार्यक्रम को एक पाखंड कहना पड़ता है !
प्रणाम राज जी,
बढ़िया लेख
राज जी, आपने ज्यादातर सही लिखा है, लेकिन ऐसे कार्यक्रमों में खर्च तो होता ही है. इतने बड़े देश का प्रधानमंत्री शपथ ले रहा हो तो बड़ा इंतजाम करना ही पड़ता है. मेहमानों को घास पर तो बैठाया नहीं जा सकता. कोई सजावट भी नहीं थी. कुर्सियों के अलावा कुछ नहीं था. इससे अधिक सादगी क्या होगी?
बढ़िया राज भाई, बहुत दिन बाद आपको यहाँ देख अच्छा लगा .