ग़ज़ल़़
कल का किसे पता मौसम कौनसा रंग लेले,आओ बैठो न दो घड़ी प्यार की बात करलें। वतन को हिफ़ाज़त तो
Read Moreजिंदगी रोज डरातीं है हमें जब भी मौका मिले धोखा दे जाती है हमें मौत का क्या है? वह हमेशा
Read Moreविचारों को बिना क़िसी डर भय या लाग- लपेट के प्रकट करना ही अभिव्यक्ति हो सकता है। अभिव्यक्ति के प्रकटीकरण
Read Moreउच्च हिमालय बहती नदियांकल कल करतीझरनों की आवाजेंफैली हरियाली ,सुगंधित सुमनमहके समीर,बहकी कलियाँऐसी गोद हिमाचल कीजय जय जय हिमाचल की।
Read Moreवरिष्ठ साहित्यकार, सिद्धहस्त व्यंग्यकार डॉ हरीश नवल जी की अध्यक्षता में आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, बिहार,
Read More“साहित्य में समाज प्रतिबिंबित होता है। तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप ही किसी काल के साहित्य
Read Moreउमड़ा दिल में प्यार,बता तो दे।छोड़ दिया घर द्वार,बता तो दे।1 सुंदर है रँग- रूप ,सुहानी है,कैसा है व्यवहार ,बता
Read Moreजिंदगी ……बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। कितना भी…. बहलाते रहे खुद को । ऐसा नहीं है…??? ऐसा हो
Read Moreआज प्रदूषण अपने विकराल रूप में पहुँच चुका है। हम जानेंगें कि यह कैसे हमारे जीवन में ज़हर घोल रहा
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