गूंज रहा मां का जयकारा, जय माता दी ।। सजा हुआ दरबार है प्यारा, जय माता दी ।। कौन है तुमसा तारन हारा, जय माता दी ।। तुमसा मइया कौन सहारा, जय माता दी ।। उसके बिगड़े काम बनें हैं, पल भर में मां,,, जिसने तेरी ओर निहारा, जय माता दी ।। उस की झोली […]
Author: समीर द्विवेदी नितान्त
ग़ज़ल
अपने चेहरे पे ताजगी रखिए । ग़म के साये में भी खुशी रखिए । जीत ही जाना प्रेम है ही नहीं, राह-ए-उल्फत में हार भी रखिए । भेद छुपता है कब छुपाने से, खुद को जो आप हैं वही रखिए । क्या ख़बर कौन कर रहा स्टिंग, दिल को हर वक्त लाॅक ही रखिए । […]
मुक्तक
सभी करने के आदी हैं, फकत बाजार की बातें किसी लब पर कहां अब, प्यार औ मनुहार की बातें अजीजों का भी अन्दाज-ए-वयां, इस तौर बदला है नहीं अपनी रहीं, होने लगीं, संसार की बातें — समीर द्विवेदी नितान्त
मुक्तक
कारोबारी सोच को अपनी दूर रखो अगर रख सको प्रेम भरा दस्तूर रखो । दुनियादारी का फेरा जीवन भर का, बैठे हो जब संग, साथ भरपूर रखो ।। — समीर द्विवेदी नितान्त
ग़ज़ल
अपना मन रखिए निर्मल ।। राम मिलेंगे निश्चय कल ।। ऐसी नहीं समस्या कोई,, जिसका ना हो कोई हल ।। कर्म प्रधान अगर है जीवन,, तो भविष्य निश्चित उज्जवल ।। अपने दाग किसे दिखते हैं,, दर्पण साथ में लेकर चल ।। अच्छा हो, यदि मन भी हो,, ऐसा जैसा, वस्त्र धवल ।। गैरों के संग […]
ग़ज़ल
सुख की चाह अगर है तो फिर तपना पड़ता है ।। हर मौसम की हर सूरत को सहना पड़ता है ।। रिश्ता कायम रखने को सब सहना पड़ता है ।। कभी कभी सच्चा होकर भी झुकना पड़ता है ।। रिश्तों के दरमियां दरारें और न बढ़ पाएं,, अक्सर सब सुनकर भी बहरा बनना पड़ता है […]
कन्नौज महोत्सव में स्थानीय कवि सम्मेलन
कन्नौज महोत्सव में स्थानीय कवि सम्मेलन में हास्य व्यंग,वीर रस की कविताओं पर खूब तालियां बजीं। एआरटीओ इज्जा तिवारी ने , पूछने आई मुझसे हवा,,खोई खोई कहां हो तुम सुनाकर श्रोताओं को लुभाया। अंजू दीक्षित ने नारी शक्ति पर रचना पढ़ी । अतिरिक्त मजिस्ट्रेट राकेश कुमार त्यागी ने जीवन के विविध सन्दर्भों को अपनी कविता […]
ग़ज़ल
तोहमतें लग रहीं सबेरों पर ।। कुछ मेहरबान हैं अंधेरों पर ।। जोर देखेंगे अब हवाओं का रख दिए हैं दिये मुंडेरों पर ।। धन की मादकता का असर अक्सर चढ़ ही जाता है नव कुबेरों पर ।। सर्प पलते हैं आस्तीनों में और इल्जाम है सपेरों पर ।। — समीर द्विवेदी नितान्त
ग़ज़ल
हद से ज्यादा करीबियां बढ़ कर ।। दूरियों में बदलतीं हैं अक्सर ।। आंधियों का नहीं कोई भी डर ।। दीप रक्खेंगे हम मुड़ेरों पर ।। ये भी है सोचना बहुत लाज़िम,,, किसका आशीष है तेरे सर पर ।। मेरी मंजिल की भी खबर हो तुम्हें,,, वाकई हो अगर मेरे रहबर ।। शेर की इक […]
मुक्तक
इस दीवाली रोशनी का बोलबाला चाहिए ।। सबके घर मे सबकी छत पर दीपमाला चाहिए ।। दीप मेरे हाथ मे हो या तुम्हारे हाथ मे । फर्क क्या पड़ता है दुनिया को उजाला चाहिए ।। — समीर द्विवेदी नितान्त