लघुकथा

माँ की सीख

“पता नहीं क्या खींच रहीं आप! कैमरा मुझे दीजिए, आपकी और पापा की एक यादगार फोटो लेनी है। दीजिए…! हाँ, इस खूबसूरत गुम्बद के पास खड़े होइए।”

“कैमरा तो दे बेटा…!”

“फिर से..!”

“अरे दे तो सही …!” कैमरा माँ-बेटे के हाथों के बीच कठपुतली-सा नाचता रहा और अपने अंदर यादगार तस्वीरें जमा करता रहा।

घर लौटते ही तुरंत-फुरंत तस्वीरें कंप्यूटर पर लोड की गईं। तस्वीरें देखते ही माँ को आवाज लगाकर बेटा बोला – “मम्मी! आप नहीं सुधरेंगीं! ये कैसी-कैसी फोटोज खींची हैं आपने…? लाल किले के कोने में पान के पीक! और यह बदबूदार गन्दा कोना..! पत्थरों पर लिखे आलतू-फालतू नाम…! जगह-जगह लुढ़की हुई पानी की खाली बोतलें, इमारत के आसपास का कूड़े का ढेर, इंट्री गेट पर फूड-वेंडर्स द्वारा फैलाई गंदगी…!”

माँ रसोई से बाहर आकर उसकी ओर देखी, फिर हँसकर रसोई में चली गयी। “डिलीट कर रहा हूँ मैं..!” बेटा तेज स्वर में बोला।

‘डिलीट’ सुनते ही वहीं से चिल्लाती हुई माँ बोली- “नहीं, नहीं, डिलीट हरगिज मत करना। ये भी एक तरह की यादें हैं। जो किन्हीं सिरफिरों द्वारा बनाई गयी होंगी, किसी शाही पत्थर को दिल समझकर। ऐतिहासिक इमारत में घूमते हुए इन लोगों ने भी न जाने कितने ख़्वाब पाले होंगे!”

“…और गंदगी!” टेढ़ा-सा मुँह बनाते हुए बेटा बोला।

“ये तस्वीरें …! बेटा! जिन्दगी में कुछ तस्वीरें सबक सीखने-सिखाने के लिए भी लीं जाती हैं।”

“आपको लगता है कि कोई भी आपकी बात मानेगा…!”

“प्रयासरत रहने में हर्ज ही क्या है बेटा…!”  समझाकर माँ रसोई में चली गयी| बेटे ने ‘माँ की सीख’ नाम से फोल्डर बनाकर उसमें वे सारी तस्वीरें दाल दी|

—  सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “माँ की सीख

  • *गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रचनाएं बहुत सुंदर लगी .

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