कविता

रामलला आये निज धाम

शापित सदियों मौन बही, ये सरयू की लहरें
आज हंस हंस बोलें
ऐ सखी क्या होवे चहूं ओर
सजे ये घाट किनारे
फूल बिछे कोने कोने
भीनी-भीनी सुगंध बहे
क्यूं धरती बदली होवे चहूं ओर
सुन सखी बीते जुगों अब लागे
वहीं कनक किरणें है आयीं
भोर सुहानी लायी
यूं लागे रघुपति सिया सहित
फिर लौटे लंका जीत
शापित सदियों मौन बही, ये सरयू की लहरें
आज हंस हंस बोल
ऐ सखी क्या होवे चहूं ओर
सुन सखी तीर बसे रधुवंशी
पहने पग मोजडी,वेश केसरी
धर सिर केसरिया पाग
दौड़े आए दर्शन को रामलला के
युगों युगों में पूरी हुई साध
शापित सदियों मौन बही, ये सरयू की लहरें
आज हंस हंस बोलें
ऐ सखी क्या होवे चहूं ओर
डगर डगर बुहारे, नगर नगर केसरिया ध्वज सजायें
घर घर आंगन फूल बिछायें
द्वार द्वार दीप जलायें
नुक्कड़ नुक्कड़ तोरणद्वार सजायें
यूं अगवानी में रामलला की मंगल गाये
सुन सखी,मंदिर मंदिर सजायें है
पान फूल कुम कुम अक्षत
जो बन पड़ा सो लायें है
साथु संतों के संग, नर-नारी अवधपुरी है आये
रामलला के दर्शन पाये
जुग जुग में रामलला ने
अब निज धाम है पाये
— शुभ्रा राजीव

शुभ्रा राजीव

मूल नाम शुभ्रा भार्गव निवासी। भीलवाड़ा राजस्थान शिक्षा। बी एस सी ,बी एड एम ए हिन्दी कार्यरत। वरिष्ठ अध्यापिका गणित शिक्षा विभाग राजस्थान रुचि लिखना पढ़ना