कविता

दोगलापन

बहुत खतरनाक होते हैं वह लोग

जो दोगली नीति हैं अपनाते

खुद की तो किसी से बनी नहीं

दूसरों को भी आपस में हैं लड़ाते 

इधर सुनी उधर हैं बताते

बुझाते नहीं आग हैं लगाते

किसी को नाराज नहीं हैं करते

सबकी हाँ में हाँ हैं मिलाते

आदत से अपनी होते हैं मजबूर

बात इनके पेट में कोई टिक नहीं पाती

जब तक इधर की बात उधर नहीं बताते

इनको आराम की नींद नहीं आती

पसंद नहीं करते हैं लोग इन्हें

मिल भी जाएं तो रास्ता काट जाते हैं

टिक नहीं पाएगी कोई बात यह जानते हैं

इसलिए काम की बात हमेशा इन से छुपाते हैं

यह भी खुश रहे वह भी खुश रहे

इसी चक्कर में अपना उपहास हैं उड़वाते

सच्चाई के यदि साथ है चलते कभी

तो झूठे के साथ भी हैं खड़े नज़र आते

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

One thought on “दोगलापन

  • डॉ. बिपिन पांडेय

    बहुत सुंदर

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