हास्य व्यंग्य

ये कहां आ गए हम …*

मैं जी रहा था बहुत मस्त लाइफ जी रहा था.. ना कोई तनाव ना कोई फिकर ..कुछ तनाव फिक्र होती भी तो धुएं में तो नहीं चाय में उड़ा देता.. दोस्तों के साथ मस्ती गपशप ,खेलना कूदना ,पिकनिक, सैर सपाटा सब कुछ बढ़िया.. कोई परेशानी मुझे कभी हुई ही नहीं..
ना कभी चक्कर आए ना कभी गिरा न बी पी न शुगर.. बीवी की चख चख पर ईयर फोन कान में डाल लेता बच्चों की कचकच पेट्रोल में उड़ा देता… कुल मिलाकर जिंदगी की गाड़ी बिना किसी रूकावट के सरपट मस्त खुशनुमा ताजगी के साथ भागी जा रही थी उस पर सवार मैं भी..
“जिंदगी एक सफर है सुहाना…..” गुनगुनाते हुए मैं नीलेश के साथ बैडमिंटन खेलने के लिए बाहर निकलने की तैयारी कर रहा था कि नीलेश का ही फोन आ गया, ” सुन ..मैं अस्पताल जा रहा हूं रुटीन चेकअप के लिए तू भी वहीं आ जा लगे हाथों तेरा भी हो जाएगा फिर वही से चलेंगे खेलने..”
” मेरा चेकअप क्यों नहीं नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूं मुझे चेकअप की जरूरत नहीं ..तू एक काम कर तू चेकअप करवा कर वहीं आ जाना तब तक मैं सुयश के साथ खेल जमा लूंगा..” मैं फोन रखने को हुआ कि आवाज आई , ” सुयश भी वहीं जा रहा है वह भी अपना चेकअप करवायेगा इसलिए कह रहा हूं तू भी आ जा 40 के बाद एक बार चेकअप करवा ही लेना चाहिए भले इंसान फिट फाट ही क्यों ना हो ..”
“अरे पर मैं मैं मैं….” मैं , मैं मैं करता रह गया फोन कट गया.. मैंने खुद को आईने में देखा 40 का हो गया तो क्या लगता तो नहीं ना फिर मुझे कभी कुछ हुआ भी नहीं ना कभी बी पी के कोई लक्षण दिखे न शुगर के ना कभी दिल में दर्द हुआ ना जिगर में दिल में कभी दर्द हुआ भी तो प्यार का दर्द था मीठा मीठा प्यारा प्यारा.. उस दर्द के लिए चेकअप कौन करवाता है ?वह दर्द तो होता ही रहता है अभी भी हो रहा है.. चलो पर ठीक है सब इतना कह रहे हैं तो चेकअप करवा ही लेता हूं क्या फर्क पड़ेगा थोड़ा पैसा ही लगेगा ना और क्या होगा ..सो बेफिक्र, तनाव रहित मैं पहुंचा हॉस्पिटल ..चेकअप होने लगा ..बीपी नार्मल, शुगर नॉर्मल, आंते, फेफड़े कोई प्रॉब्लम नहीं ..दिल.. बस यही दिल अटक गया ..डॉक्टर ने देखा और भगदड़ मच गई “ब्लॉकेज..दिल में ब्लॉकेज है..एक नहीं दो नहीं पूरे तीन.. आपको पता नहीं चल रहा पर आपको अटैक आया है हल्का सा.. अभी केयर नहीं किया तो बड़ा अटैक आ जाएगा फिर आप टैं बोल जाएंगे.. अभी आपकी एंजियोग्राफी एंजियोप्लास्टी करनी पड़ेगी उससे भी ठीक नहीं हुआ तो हार्ट का ऑपरेशन करना पड़ेगा.. अब आप सोच लीजिए ..” मेरे सोचने की प्रतीक्षा करे बिना डॉक्टर ने नर्स से कहा …” इन्हें तुरंत आईसीयू में लेकर जाओ..” चिंता के मारे मेरा तो वहीं हार्ट फेल होते होते बचा ..ये क्या मैं एकदम फिट फाट स्वस्थ फाइन.. ब्लॉकेज कैसे हो गए? कब हो गए? कौन बुरी घड़ी में फंस गया ..क्यों आया चेकअप करवाने ?यह नीलेश का बच्चा खुद तो बच गया मुझे फंसा दिया ..अब क्या होगा, रीना का क्या होगा, बच्चे क्या करेंगे ,मेरे बिना उनका क्या होगा ,उससे पहले मेरा क्या होगा ..अब तो मेरी मौत निश्चित है. अब तो मैं मर ही जाऊंगा..उफ्फ.. क्या हो गया ये ?’ इधर में इस चिंता में उधर डॉक्टर नर्स की भागदौड़ देख देख कर दूसरी चिंता में ..नीलेश ने रीना को फोन कर दिया था वह भी बदहवास भागी भागी आई ..”हे भगवान यह क्या हो गया इन्हें तो कभी छींक तक नहीं आई हार्ट कैसे बंद हो गया, किस कलमुही को दिल में बिठाया इन्होंने कि दिल ब्लॉक ही हो गया ..हे भगवान यह सुनने से पहले मैं बहरी क्यों न हो गई, मर क्यों ना गई ..भगवान इससे तो अच्छा था तू मुझे ही उठा लेता..” वहां खड़ी नर्स ने जरा सख्ती से उसे डपट दिया “यहां इतना शोर मत मचाओ अभी यह पेशेंट है पति नहीं घर ले जाकर जितना सुनाना है सुना लेना अभी बिल्कुल चुप…..” रीना फिर भी चुप नहीं हुई , “यह पेशेंट मेरा पति है इसे डांटू, बातें सुनाऊं, ताने दूं ,कुछ भी करूं आप बोलने वाली कौन होती है? ” नर्स पैर पटकती डॉक्टर को बुलाने चली गई ..रीना मेरी तरफ मुड़ी , “अब बता भी दो कौन है वह कलमुंही..उसी को बुला लो वही इलाज करवा देगी वही खुलवा देगी ब्लॉकेज, बिल भी यहां का वही भर देगी …”मैं क्या कहता चिंता के मारे मेरी जुबान तो तालू से चिपकी पड़ी थी मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे इलाज करवाऊं तो इलाज का खर्चा मार देगा नहीं तो ब्लॉक मार देगा क्या करूं क्या ना करूं मेरी हंसती खेलती चिंता रहेगी जिंदगी में चिंता के बादल मंडराने लगे.. उधर रीना की चक चक शुरू थी आज तो इयर फोन भी नहीं थे जो कान में डाल देता.. आईसीयू के बेड पर पड़ा उसकी बकबक सुनता रहा ..निलेश सुयश ने मिलकर डॉक्टर से बात की ..पेपर्स पर रीना के साइन लिए.. एंजियोग्राफी करवाने की डॉक्टर्स को रजामंदी दी और डॉक्टर शुरू हो गए …उनके औजार देखते ही मेरी घबराहट बढ़ गई, चक्कर आने लगा ,पसीना पसीना हो गया, दिल की धड़कने राजधानी एक्सप्रेस से भी तेज चलने लगी, दर्द भी सताने लगा …मेरी यह हालत देख डॉक्टर्स में फिर भगदड़ मच गई, “इन्हें तो मेजर अटैक आया है,फौरन पुना शिफ्ट करना पड़ेगा, तुरंत ऑपरेशन करना होगा “
आनन-फानन एंबुलेंस आ गई 2 घंटे पहले के हंसते खेलते व्यक्ति को गंभीर पेशेंट बना एंबुलेंस में डाल पहले एयरपोर्ट फिर वहां से पुणे रवाना कर दिया गया… तब तक मेरे साले और मेरा भाई भी आ गया था ..मुझे अभी तक समझ नहीं आ रहा था कि मुझे हुआ क्या है मैंने डॉक्टर से पूछने की कोशिश कि
“मुझे हुआ क्या है ?”
उन्होंने कहा, “आपको मेजर हार्टअर्टैक आ रहा है..” मैंने कहा , “पर मुझे तो कुछ नहीं हो रहा..”
उन्होंने डपट दिया ,”चुप रहो.. डॉक्टर तुम हो या हम..” उन्होंने डॉक्टर (कसाई) होने का फर्ज निभाया और पेशेंट (बकरे) को ऑपरेशन थियेटर में ले गए काटने के लिए.. ऑपरेशन हो गया मुझे पता नहीं क्या हुआ
पर डॉक्टर कह रहे थे , ‘समय पर ले आए तो यह बच गए वरना भारी हार्टअटैक था बचना बहुत मुश्किल था.’ मेरे दोस्त खुश थे मैं बच गया, मेरे साले खुश थे मैं बच गया, मेरा भाई खुश था मैं बच गया.. सिर्फ रीना परेशान थी कि इलाज का खर्च कैसे पूरा होगा ..बच्चे उदास थे कि अब घुमाने कौन ले जाएगा और उनकी फरमाइशे कौन पूरी करेगा.. तीन दिन आईसीयू में और सात दिन प्राइवेट रूम में रहने के बाद डिस्चार्ज का दिन तय हुआ.. अस्पताल से विदाई की तैयारी होने लगी.. अस्पताल के कपड़े बदल घर के कपड़े पहनाए जाने लगे, सामान समेटा जाने लगा ..नर्स बिल बनवा रही थी ,वार्डबॉय अपना इनाम लेने को तत्पर खड़े थे.. दवाइयों का बिल तो पहले ही बना हुआ था.. न जाने कितने इंजेक्शन व टेबलेट मेरे शरीर में प्रवेश कर चुकी थी या पीछे के रास्ते से वापस मेडिकल स्टोर में पहुंच गई थी पता नहीं ..आखिरकार जाने की घड़ी आई बचे हुए पैसे जमा करके रीना जाने लगी मैंने बिल देखा दस लाख चार हजार दौ सो चालीस रुपए तो सिर्फ ऑपरेशन और रूम के थे… दवाइयों के अलग से… बिल देखते ही मुझे चक्कर आ गया और मैं वहीं फिर से चक्कर खाकर गिर गया ..इससे पहले मुझे अटैक आया था कि नहीं पता नहीं पर इस बार पक्का मुझे अटैक आया था ..चिंता चिता समान होती है यह कहावत याद आ रही थी ,इस कहावत का अर्थ अब समझ में आ रहा था.. अस्पताल के उसी बिस्तर पर दिल थामकर पड़ा मैं सोच रहा था बिल, बीमारी व बर्बाद हो जाने की यह चिंता कहीं मुझे वाकई चिता तक ना पहुंचा दे ..बचाना है ईश्वर……

डॉ. ममता मेहता

लेखन .....लगभग 500 रचनाएँ यथा लेख, व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़ल, बच्चों की कहानियां सरिता, मुक्ता गृहशोभा, मेरी सहेली, चंपक नंदन बालहंस जान्हवी, राष्ट्र धर्म साहित्य अमृत ,मधुमती संवाद पथ तथा समाचार पत्रों इत्यादि में प्रकाशित। प्रकाशन..1..लातों के भूत 2..अजगर करें न चाकरी 3..व्यंग्य का धोबीपाट (व्यंग्य संग्रह) पलाश के फूल ..(साझा काव्य संग्रह) पूना महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा संकलित पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा 8 वी और 5वी में कहानी प्रकाशित। पूना महाराष्ट्र बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए अभ्यास मंडल की सदस्य प्रस्तुति ..सब टीवी पर प्रसारित "वाह वाह क्या बात है" और बिग टीवी पर प्रसारित "बहुत खूब" कार्यक्रम में प्रस्तुति दूरदर्शन आकाशवाणी से काव्य पाठ संगोष्ठियों शिबिरो में आलेख वाचन ,विभिन्न कविसम्मेलन में मंच संचालन व काव्य पाठ दिल्ली प्रेस दिल्ली तथा राष्ट्रधर्म लखनऊ द्वारा आयोजित व्यंग्य प्रतियोगिता में सान्तवना ,द्वितीय व प्रथम पुरस्कार ।

One thought on “ये कहां आ गए हम …*

  • डॉ. विजय कुमार सिंघल

    इस व्यंग्य कहानी में चेकअप के नाम पर डॉक्टरों और अस्पतालों द्वारा की जाने वाली लूट-खसोट का अच्छा चित्रण किया गया है, जो स्वस्थ आदमी को भी वास्तव में बीमार कर देते हैं और किसी भी रोगी को ठीक नहीं कर पाते। इसके लिए लेखिका बधाई की पात्रा हैं।

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