कहानी

आज के श्रवण कुमार* 

बढ़िया कीमती जॉर्जेट की साड़ी, मैचिंग कीमती साड़ी पिन, कीमती नाजुक ज्वेलरी में सजी-धजी सुमी अच्छे कमेंट सुनने की उम्मीद लिए किटी पार्टी में पहुंची.. वहां गरमा गरम चर्चा चल रही थी.अपनी बातों में डूबी महिलाओं में से किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं गया.निराश सुमी ने पल्ला झटक कर निराशा झटकने की कोशिश की और सुनने लगी कि आज किस विषय पर बातों का बाजार इतना गर्म है. इतने में होस्ट मिसेस मल्होत्रा की नजर उस पर पड़ी,”अरे सुमी.. आ गई!आज बड़ी देर कर दी. ले रसगुल्ला खा,पी.ई.टी की एग्जाम में मेरे बेटे को हाईएस्ट मार्क्स मिले हैं.”

मिसेज शर्मा बोली,”पिछले साल मेरे राहुल ने दी थी वह तो मेरिट में ही था.200 में से 199 मिले थे उसे.”

मिसेज बंसल भी बोली,”मेरा बेटा सी.ए. में टॉपर था’ तो मिसेज खत्री भी भला क्यों पीछे रहती वह भी बोली,”मेरे बेटे ने आई.ए. एस. की एग्जाम दी, रिटन टेस्ट में तो वह फर्स्ट अटेम्प्ट में ही निकल गया था पर इंटरव्यू में अटक गया. वो तो उसकी थोड़ी तबीयत गड़बड़ हो गई थी वरना इंटरव्यू भी क्लियर कर लिया होता उसने..”

मिसेज ठक्कर बोली, “कुछ भी कहो आज के जमाने के हिसाब से हमारे बेटे बड़े अच्छे हैं भई वरना आजकल के लड़के तो टीवी मोबाइल कंप्यूटर में ऐसे चिपके रहते हैं कि पूछो मत पर मेरा बेटा तो इन चीजों का इतना ही इस्तेमाल करता है जितना जरूरी होता है, नहीं तो उसका तो वो भला उसकी किताबें भली,” मिसेज शर्मा बोली,”सही कहा मिसेज ठक्कर आपने,आजकल के लड़कों को ना पढ़ाई की फिक्र न मां बाप की, फीस भरते भरते बेचारे मां-बाप की आधी उम्र निकल जाती है पर लड़कों को मटरगश्ती से ही फुर्सत नहीं मिलती पर शुक्र है भई मेरा बेटा ऐसा नहीं है. उसे तो अपने मां-बाप की इतनी फिक्र है कि बस.. उस दिन जरा सा मैंने कह दिया कि मेरे सर में बहुत दर्द हो रहा है तो उसकी हालत ऐसी हो गई जैसे मुझे सिर दर्द नहीं ब्रेन ट्यूमर हो गया हो कभी कहे ‘लाओ मम्मी मैं आपका सिर दबा दूं’ कभी कहे चाय बना दूं कभी कहे कोई गोली ला दूं या डॉक्टर को बुला रहा दूं, मैं तो निहाल ही हो गई.”

मिसेज शर्मा की बात सुनकर मिसेज तिवारी का बखान शुरू हो गया, “फिक्र की खूब कहीं मिसेज शर्मा आपने मेरे बेटे तो दिन रात हमारी चिंता में डूबे रहते हैं. बड़ा बेटा तो मेरा उठते बैठते यही कहता है, ‘ बस मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए और एक बढ़िया नौकरी मिल जाए फिर मैं आपके सारे अरमान पूरे कर दूंगा, आपके लिए एक हीरे का सेट लाऊंगा, आप को घुमाने ले जाऊंगा, चारों धाम की यात्रा करवाऊंगा,’ बस यह समझ लो कि मेरा श्रवण कुमार है मेरा बेटा.मैं तो कहती हूं मैंने जरूर पिछले जन्म में कोई पुण्य कार्य किए होंगे इसीलिए इस जन्म में मुझे श्रवण कुमार जैसा बेटा मिला है.”

मिसेज शर्मा सुमी की तरफ मुड़ी “आप चुप क्यों है भई आप भी तो कुछ बोलिए.” 

सुमी कुछ कहती इसके पहले मैसेज ठक्कर बोल पड़ी,”यह क्या बोले भई इनके तो दोनों लड़कियां ही हैं.. कुछ भी कहो बेटे की बात अलग ही होती है. बेटियां अभी भले मां-बाप के लिए कितना कुछ कर लें हैं तो पराया धन ही, आखिर एक ना एक दिन तो उन्हें जाना ही है. फिर ब्याह के बाद बेटियों पर वह हक थोड़ी ही रहता है. बेटे पर तो हमेशा हक जमाया जा सकता है शादी के पहले भी और शादी के बाद भी. क्यों है न!!

सुमि का मुंह उतर गया पर जवाब तो देना ही था सो बोली, ” आजकल तो बेटा बेटी सब बराबर है. अब पहले जैसी बात तो रही नहीं की बेटी एक बार ससुराल गई तो वहीं की होकर रह गई. अब तो जमाई भी उतना ही ध्यान रखते हैं जितना बेटे.”

मिसेज तिवारी ने मिसेज ठक्कर की हां में हां मिलाई,”फिर भी जो ध्यान बेटे रखते हैं और जो हक हम बेटे पर जमा सकते हैं वह जमाई के ऊपर थोड़ी ना जमा सकते हैं ! जमाई की तो जमाईयों जैसी खातिरदारी करनी पड़ती है. बेटियां तो सच पूछो तो एक जिम्मेदारी ही होती है, शादी से पहले भी शादी के बाद भी..नहीं!पनीर टिक्का चबाती मिसेज बत्रा भी बेटे वाली होने के गुरुर को छलकने से रोक नहीं पाई, “जमाना कुछ भी कहे, कहीं भी पहुंचे पर बेटा तो बेटा ही है. वंश बढ़ाने के लिए, नाम चलाने के लिए और तर्पण करने के लिए बेटा तो चाहिए ही. उस पर अगर मेरे बेटे जैसा बेटा हो तो समझो कि आप से बड़ा नसीबवान और सुखी प्राणी इस दुनिया में और कोई नहीं. वह तो श्रवण कुमार से भी बढ़कर है. मजाल है जो मेरे या इनकी मर्जी के बिना एक कदम भी उठा ले! कहता है,’ मेरा तो बस एक ही सपना है आप दोनों की खूब सेवा करूं, खूब ख्याल रखूं,अपने आप को इस काबिल बना लूं कि आपकी सब तकलीफ दूर कर सकूं’..उसकी ऐसी बातें सुनकर मेरा तो खून बढ़ जाता है. डर लगने लगता है कि कहीं मेरी नजर ना लग जाए मेरे बेटे को.”

 फिर तो जितनी देर पार्टी चली उतनी देर सब बेटे वालियां अपने-अपने श्रवण कुमार की गाथा बखानती रही. सुमी मन ही मन उबलती, ऊपर से बुझी हुई श्रवण कुमारों के गुरुर से चमके चेहरे देखती रही.”

 घर पहुंची तो राज उसका इंतजार ही कर रहा था.उसे देखते ही बोला, “आ गई अब जल्दी से मुझे कुछ खिलाओ पिलाओ बहुत भूख लगी है..”

 बेटा ना होने के गम से भरी सुमि तमक कर बोली, “जब मैं मर जाऊंगी, बेटियां अपने घर चली जाएंगी तब कौन खिलाएगा पिलायेगा? आते ही शुरू हो गए खिलाओ पिलाओ खुद लेकर नहीं खा सकते थे?”

राज चकरा गया, “अरे ऐसे क्यों भड़क रही हो! मैंने तो सिर्फ कुछ खाने को ही मांगा है और तो कुछ नहीं किया !”

सुमी ने मुंह बिगाड़ा, “वही तो रोना है कि आप कुछ करते नहीं.. कितना कहा था मैंने आपको कि एक बेटा दे दो, एक बेटा दे दो.. दिया?”

राज ने हैरानी से पलकें झपकाई, “क्या कह रही हो! मुझे तो लगा था कि ये दोनों बच्चे मेरे ही हैं,तुमने पहले कभी बताया नहीं कि ये मेरे बच्चे नहीं हैं..”

सुमी ने गुस्से से पांव पटके,”हर वक्त फालतू बातें, फालतू सोच.. ये तो बेटियां हैं, मैं बेटे की बात कर रही हूं. एक बेटा दे देते तो आपका कुछ बिगड़ जाता! आपको क्या पता बेटे वाली मांओं का गुरूर क्या होता है,कितना गर्व होता है बेटे की मां बनने पर, कितना सुकून मिलता है बेटा पैदा होने पर..”

राज ने  सीना फुलाया,”तो अब कर लो ना! अभी भी क्या बिगड़ा है? ‘ तू अभी तक है हंसी और मैं जवां,’ परिवार नियोजन वाले भी कहते हैं ‘ दो या तीन बच्चे होते हैं घर में अच्छे’ अबकी हम जांच करवा लेंगे..”

सुमी ने मुंह बनाया, “जांच करवा लेंगे ..पहले ही क्यों ना करवा ली जांच. पर मेरी इच्छाओं की मेरी भावनाओं की आपने कभी कद्र की ही नहीं बस अपनी-अपनी चलाते रहे. एक बेटा हो जाता तो आज किटी पार्टी में मुझे इतनी बातें नहीं सुननी पड़ती,बेटियों की मां होने की वजह से जो नीचा देखना पड़ा वह नहीं देखना पड़ता. पता है बेटा पैदा होने पर कितना गुरूर है उन बेटों की माओं को .आज कैसे-कैसे सब की सब अपने अपने बेटों का बखान कर रही थीं.. सब के बेटे श्रवण कुमार है जो अपने मां-बाप की सेवा करेंगे, उन्हें तीर्थ यात्रा करवाएंगे, उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. एक मैं ही हूं जो बुढ़ापे में अकेली बैठी मच्छर मारती रहूंगी.”

राज ने कहा, “इसमें इतना दुखी होने की तो कोई बात नहीं.अभी चांस ले लो. तुम्हारे बुढ़ापे तक वह बड़ा हो जाएगा फिर तुम्हें ले जाएगा बद्रीनाथ काशीनाथ ठीक है ना ! चलो अभी से काम पर लग जाए.”

सुमी गुस्से से आंखें तरेरती, पैर पटकती अंदर चली गई..

समय का परिंदा कभी किसी पिंजरे में कैद नहीं रहता .उसे उड़ते देर नहीं लगती. मिसेज शर्मा, मिसेज ठक्कर, मिसेज मल्होत्रा, मिसेज तिवारी सभी के बेटे बड़े हो गए, नौकरी लग गई और उनकी शादियां भी हो गई..

कुछ ही दिनों बाद सुमी ने राज को बताया, “पता है मिसेज शर्मा अस्पताल में भर्ती हैं..”

राज ने अखबार आंखों के सामने से हटाया,”क्यों ऐसा क्या हो गया? 

सुमी ने हल्के व्यंग्य से कहा, “उनका श्रवण कुमार उनके बजाय अपने सास-ससुर को बद्रीनाथ की यात्रा पर ले गया है. यह सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर पाई इसलिए बेचारी बद्रीनाथ की बजाय अस्पताल पहुंच गई..

 और सुनो मिसेज मल्होत्रा का बेटा अपने सास-ससुर के बहकावे में आकर अपनी बीवी को लेकर अलग होने की बात कर रहा है. मैसेज मल्होत्रा भी दुखी हैं.

मिसेज ठक्कर की बहू उनके साथ रहना नहीं चाहती. बेटा मां से सीधे-सीधे नहीं कह पा रहा है पर कहीं दूर ट्रांसफर करवाने की जुगत में बैठा हुआ है. बीवी नाराज ना हो जाए इसलिए आधे से ज्यादा समय ससुराल में ही पड़ा रहता है.मिसेज तिवारी का बेटा तो घर जमाई ही बन गया है बेचारी मिसेज तिवारी.”

 कहते-कहते उन सब का दुख सुमी के चेहरे से भी झलक पड़ा. राज ने कहा,”तुम्हें पता है इन लोगों ने क्या गलती की?”

 सुमी ने पूछा “क्या?”

 “इन्होंने अपने बेटों की शादियां कर दी. अगर ये सब घर में बहू लाने के चक्कर में नहीं पड़ती ना तो इनके बेटे इनके श्रवण कुमार ही बने रहते. अब बताओ श्रवण कुमार अपने मां बाप की सेवा में क्यों लगा हुआ था? क्योंकि उसने शादी नहीं की थी.अगर उसने शादी कर ली होती तो वह भी अपने मां-बाप के बजाय सास ससुर की सेवा कर रहा होता.. है कि नहीं!”हंसते हुए राज ने कहा, “पर तुम बताओ.तुम्हारे बेटे का क्या हुआ.?

 सुमी ने उसके हाथ में पकड़ा अखबार मसल दिया, “जब देखो तब शरारत.अब रहने दो बेटे की कमी जमाई पूरी कर देंगे. आखिर वे भी तो अपने मां-बाप के श्रवण कुमार होंगे ना जो उनके बजाय अपने सास-ससुर की यानी हमारी सेवा करेंगे.” कहती हुई वह अंदर चली गई. राज निराशा से उसे जाते हुए देखता रहा, 

डॉ. ममता मेहता

लेखन .....लगभग 500 रचनाएँ यथा लेख, व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़ल, बच्चों की कहानियां सरिता, मुक्ता गृहशोभा, मेरी सहेली, चंपक नंदन बालहंस जान्हवी, राष्ट्र धर्म साहित्य अमृत ,मधुमती संवाद पथ तथा समाचार पत्रों इत्यादि में प्रकाशित। प्रकाशन..1..लातों के भूत 2..अजगर करें न चाकरी 3..व्यंग्य का धोबीपाट (व्यंग्य संग्रह) पलाश के फूल ..(साझा काव्य संग्रह) पूना महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा संकलित पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा 8 वी और 5वी में कहानी प्रकाशित। पूना महाराष्ट्र बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए अभ्यास मंडल की सदस्य प्रस्तुति ..सब टीवी पर प्रसारित "वाह वाह क्या बात है" और बिग टीवी पर प्रसारित "बहुत खूब" कार्यक्रम में प्रस्तुति दूरदर्शन आकाशवाणी से काव्य पाठ संगोष्ठियों शिबिरो में आलेख वाचन ,विभिन्न कविसम्मेलन में मंच संचालन व काव्य पाठ दिल्ली प्रेस दिल्ली तथा राष्ट्रधर्म लखनऊ द्वारा आयोजित व्यंग्य प्रतियोगिता में सान्तवना ,द्वितीय व प्रथम पुरस्कार ।