कविता

हे बद्री-केदार

हे बद्री-केदार कहां हो तुम! 

तुम्हारी देवभूमि जल रही है।

जंगलों के जानवर प्यास से मार रहे हैं।

हजारों पक्षियां आग की 

लपटों में राख हो चुकी हैं।

हे नंदा..! हे सुनंदा..! कहां हो तुम!

पंचाचूली से लेकर दूनागिरी तक 

अग्नि धधक रही है।

लाखों वृक्ष और पौधे 

जलकर खाक हो चुके हैं।

हे अलकनंदा…! हे भागीरथी…!

अपनी जलधारा से 

इस देवभूमि को बचा लो।

अब नहीं देखा जाता 

इसका दर्द और इसकी पीड़ा।

— दीपक कोहली

दीप खिमुली

स्वतंत्र लेखक व पत्रकार दिल्ली

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