पर्यावरण

एक दिन कुदरत अपना पैमाना लेकर जरूर दौड़ेगी

कुदरत जब अपना रौद्र रूप धारण करती है और पूरे मस्ती में आगे बढ़ती है तब हम इंसानों को अपनी कामयाबी और अपने जीवनकाल में हांसिल की गयी सफलताओं को देख कर लगता है कि आज हम कुछ भी नही कर पाये जहां से चले थे वहीं पर आज भी हैं, इंसानों द्वारा बनाये गये तमाम तरीकों के तामझाम एक झटके में सब फेल नजर आने लगते हैं और पूराना सिलसिला शुरू होता है इंसान को इंसान के काम आने का चाहे वह इंसानियत के बलबूते पर दूसरे की मदद करना हो या फिर अपना कर्तव्य समझकर दूसरों को राहत पहुंचाना हो, प्रकृति जब अपनी हदों का सीमांकन करना प्रारम्भ करती है तो पृथ्वी पर बिलबिलाती पूरी मानवजाति को समेट कर रख देती है और मानव के द्वारा बनायी गयी सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त और ध्वस्त कर देती है, और उन व्यवस्थाओं पर निर्भर आज का मानव जैसे बिन पानी के मछली जैसा दिखने लगता है, आज का मानव अपने बल बुद्धि विवेक के दम से भले ही चांद पर पहुंच गया हो या फिर सूरज के नजदीक जाकर सूरज की गतिविधियों पर नजर रख रहा हो लेकिन सच यह है कि हमें अभी तक जमीन पर ढंग से रहना नही आया है और यह विचार करने की बात है कि अब तक हम कुदरत के कितना नजदीक पहुंच पाये हैं ?  जिसने मुझे इस भूखण्ड पर जीने का सहारा दिया हम उसके लिये आज क्या कर रहे हैं ?  एक चौथाई हिस्से में हमारा भूखण्ड पानी में तैर रहा है और हम जमीन पर पांव नही रख रहे हैं,  मानवजाति में जन्म लेने वाले प्राणी को इस धरती पर सबसे बड़ी जिम्मेंदारी निभानी पड़ती है क्योंकि कुदरत ने सबसे खूबसूरत प्राणी इंसान को बनाया है साथ ही साथ इंसान को इंसानियत के नाते धरती के सभी जीव जन्तुओं की सेवाओं का भार सौंप रखा है और आज की मानवजाति अपनी जाति के सिवा अन्य प्राणियों के लिये काल बनती जा रहा है चाहे वह जंगलों की अंधाधुन्ध कटाई हो या संचार व्यवस्था का विस्तार हो आज का इंसान जिस वायुमण्डल में जी रहा है उस पर एकाधिकार को प्रदर्शित करते हुये अन्य किसी प्राणी के लिये अपने वातावरण में स्थान नही छोंड़ रहा है चाहे वह वायुमण्डल में विचरण करने वाले पक्षी हों या फिर जंगलों और पेंड़ पौंधों के बीच जीवन निर्वाह करने वाले पशु हों।

जब सरकारें अपने द्वारा कराये गये कार्यों का महिमा मण्डन करना प्रारम्भ करती हैं तो देखकर व सुनकर बडा आश्चर्य लगता है कि उनके राज्य और उनके देश के सभी लोगों में ईश्वरी शक्ति का संचार हो चुका है किसी भी विपत्ति व दैवीय आपदाओं को गोवर्धन पर्वत की तरह अपनी एक उंगली पर अब उठा लेगा  बाढ़, सूखा, भूकम्प और सुनामी ये सब इंसानों की दासी बन कर उनके घरों में झाडू पोंछे का काम करती हैं और हाथ जोड़े इनके स्वागत के लिये खड़े रहती हैं। हमारा सर उस दिन शर्म से झुक जाता है कि जिस दिन हम इस धरती पर आने वाली किसी भी प्रलय का सामना नही कर पाते हैं, और लाखों लोगों की लाशों को पानी में कागज की तरह तैरते हुये सिर्फ देखते ही रह जाते हैं, जबकि जमीन से लेकर आसमान तक की सारी शक्तियां आज के इंसानों की मुट्ठी में हैं फिर भी 26 दिसम्बर 2004 को आयी सुनामी में हमारे हाथ पांव व हमारे द्वारा तैयार किये गये संसाधन सब बेकार ही साबित हुये, तमाम तरह की तरक्की हांसिल करके फिर भी हम तीन लाख से ज्यादा इंसानों को पानी के शैलाब में बहते और मरते देखा हैं, बहुमंजिला इमारतें ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर जमींदोज होते देखा है,  इंसानों द्वारा तैयार किये गये तमात तरह के संसाधानों को तिनके की भांति बिखरता हुआ देखा है, इतना सब कुछ देखने के बाद भी हम प्रकृति को अनदेखा कर रहे हैं और अपनी हरकतों से बाज नही आ रहे हैं और अहम की गंभीर बीमारी से ग्रसित होकर प्रतिदिन आने वाले समय में एक नयी तरह की त्रासदी को न्योता देते रहते हैं। अभी सुनामी के घाव पूरी तहर से भरे भी नही थे कि 16 जून 2013 यानी 9 साल के अन्दर ही उत्तराखण्ड के पहाड़ों पर प्रलय की एक झलक भी देखने को मिली थी उस दिन भी इंसानों द्वारा बनायी गयी सारी व्यवस्था चरमराई नजर आयी थी नजारा इतना वीभत्स था कि अपनों के सामने अपने दम तोड़ रहे थे और वो उनके लिये कुछ भी कर नही पा रहे थे और जिन्दा वा मुर्दा इंसान पानी के बहाव में सूखे पत्ते की तरह बहे जा रहे थे उस दिन भी इंसानों के द्वारा किया गया विकास चरम पर था क्या किसी के काम आया ?  कई महीनों तक इंसानों की सड़ी गली लाशें इंसानों को मिलती रही फिर भी आज के इंसानों के कानों पर जूं तक नही रेंगी उस दैवीय आपदा के न जाने कितने लोग शिकार हुये जो आज तक अपने घर वापस नही जा सके और उनके इंतजार में न जाने कितने लोगों ने अपनी जान गवां दी उस हादसे में भी एक से बढ़कर एक सम्पन्न व वैभवशाली लोग शामिल थे जो एक रोटी के लिये तरस गये और पहाड़ों में फंस कर मर गये क्या उनकी सम्पन्नता उनके काम आयी ?

09 सितम्बर 2023 को उ0प्र0 के बाराबंकी लखनऊ, सीतापुर, फैजाबाद सहित न जाने कितने जनपदों में 24 घंटे मूसलाधार वर्षा हुयी जिसका परिणाम यह देखने को मिला कि शहरी क्षेत्र के उन लोगों के घरों में पानी घुस गया जो लोग नाक पर मक्खी तक नही बैठने देते थे वही लोग अपनी छत पर बैठ कर किसी के सहारे का इंतजार कर रहे थे, घरों की साज सजावट देख कर ऐसा लग रहा था मानों कि सोने की लंका का निर्माण कराया गया है इस पर किसी का कोई प्रभाव नही हो सकता है और न ही कोई संकट आ सकता है और वक्त तो इनकी चरण वन्दना करता है, यही नही राजधानी को जाने वाले मार्ग पर जलधारा ऐसे बह बह कर थपेडे मार रही थी मानो सागर सोमनाथ के मंदिर पर सर पटक रहा हो,  मार्ग के किनारे व घरों के सामने खड़े वाहनों को देख कर लग रहा था कि मानों इनको कई युगों से पानी की भेंट नही हुयी थी जो पूरी तरह से जलधारा की आगोश में समा कर अपने को तर-बतर करते नजर आ रहे थे वहीं व्यापारी अपनी अपनी दुकानों से मशीनों के साहारे पानी को अन्दर से बाहर करने में जुटे थे और सारे शहर के वासी अपने अपने घरों में दुबके पड़े थे और बादल के छटने का इंतजार कर रहे थे साथ ही साथ अपने जनपद में विकास की बहायी गयी गंगा के दर्शन अपने घर के आंगन में कर रहे थे, और विजली, पानी, संचार के ध्वस्तीकरण के संकट का प्रत्यक्ष दर्शन करके हर्षारितेक का अनुभव कर रहे थे अब करें भी क्यों न क्योंकि सड़क, विजली, पानी, यातायात संचार आदि नाना प्रकार की व्यवस्थाओं को हम सब आज विकास की नजर से देख रहे हैं वहीं दूसरी ओर जहां मानवजाति की निरन्तर बृद्धि हो रही है तो क्या प्रकृति की बृद्धि के लिये आज नादियों, पर्वतों, वनों, पेंड़ पौधो, पशु पक्षियों की हम सभी के द्वारा कितनी बृद्धि की गयी है इन सभी के लिये हमारे द्वारा कितना विकास किया गया है और आज क्या किया जा रहा है ? वर्तमान समय का मानव सर्वभौमिक से सिमट कर सिर्फ स्वार्थ पर आकर टिक गया है आज के इंसान को अपने वा अपनों के सिवा कुछ भी नजर नही आ रहा है जबकि सच यह कि इस वातावरण पर जितना अधिकार आज के मानवजाति का है उतना ही अधिकार धरती के हर प्राणी का है मानव के द्वारा बनाई गयी कोई भी व्यवस्था आपत्ति काल में साथ नही देगी क्योंकि मानवजाति की उत्पत्ति ही प्रलय के बाद हुयी है इसलिये नई सभ्यता प्रलय के बाद ही उत्पन्न हो पायेगी क्योंकि आज हम जमीन को ऐसी ललचाई नजर से देखने लगे हैं कि एक दिन कुदरत अपना पैमाना लेकर जरूर दौड़ेगी उस दिन सभी के बैनामा, पट्टे को रद्द करके अपना हल चला देगी और सारी मिट्टी को उलट पलट कर रख देगी अभी तो हवाएं आती हैं झोपड़ी को हटाने के लिये जब तूफान आयेगा तो बुनियादें हिला देगा।

राजकुमार तिवारी राज (राज)

बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

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