कविता

सुख में सभी साथ चलते हैं

मुझे भूलती नहीं लोगों से वह मुलाकातें याद रहती हैं मुझे उनकी छोटी छोटी बातें भूलना भी चाहूँ तो भूल नहीं पाता हूँ चोट करती हैं दिल पर जैसे हों सर्द रातें ज़माने भर को हमने देखा और परखा है कोसों दूर हकीकत से होती हैं ज़माने की बातें मुंह पर बहुत मीठापन लिए घूमते […]

कविता

कल्पनाओं में तुम रहती हो

तुम ही तो हो जो मन में रहती हो इक धारा सी बन कर बहती हो मिल जाना चाहती हो समुंदर में बहुत वियोग तुम सहती हो चलती रहती हो अविरल न निराश कभी न कोई थकान पहुंचना है मंजिल तक मुझे सभी खतरों से अनजान हार नहीं कभी जीवन में मानी करती हूं वही […]

कविता

प्यार भरी चांदनी रातें

वह भी क्या दिन थे जब होती थी रोज मुलाकातें कट जाती थी यूँ ही जागते प्यार भरी चांदनी रातें मुश्किल होता था बिताना इन्तज़ार में हर इक पल मिलते थे जब खत्म नहीं होती थी वह प्यार की बातें वह छुप छुप कर मिलना तुम्हारा देर से आना मेरा गुस्सा हो जाना तुम्हारा प्यार […]

कहानी

कहानी – पत्ता गोभी

आज से लगभग पचास वर्ष पहले की बात है । कोटधार की तलहटी में बसे एक गांव में एक अल्हड़ कमला नाम की युवती जिसने अभी यौवन की दहलीज पर पांव रखा ही था, अपने परिवार के साथ रहती थी।कमला गांव में पली बढ़ी व गांव के ही परिवेश में बड़ी हुई थी। उस समय […]

कविता

खुशहाल भारत मैं बनाऊंगा

चाहे खेत हो या हो खलिहान सड़क का काम हो या हो मकान बड़े बड़े पुलों का निर्माण करना हो क्रिकेट का स्टेडियम हो या हो मैदान मेरे काम की कीमत कोई समझता नहीं मेरे बिना कोई भी काम हो नहीं सकता कड़कती धूप हो या कड़ाके की ठंड फौलादी शरीर है नरम हो नहीं […]

कविता

मायका और ससुराल

बहुत फर्क है दोनों में मायका हो या हो ससुराल एक विवाहिता ही बता सकती है मायका अच्छा था या अच्छा है ससुराल यदि ससुराल पक्ष के लोग हों अच्छे तो जाती है नारी अपना मायका भूल सास ससुर में मिल जाते हैं माता पिता खुश रहती है चाहे परिस्थितियां हों प्रतिकूल मायके में कोई […]

कविता

वक्त का क्या भरोसा

पूर्व निश्चित है आदमी का जीवन मरण आदमी पैदा होता है मर जाता है उतना समय ही यहां रहता है जितना इस जगत से नाता है सबको अपनी अपनी पड़ी है काम निकल जाए आंख दिखाता है कितना मतलबी हो गया खुदगर्ज इंसान की मज़बूरियां नहीं समझ पाता है किसी से क्या लेना देना है […]

कविता

इश्क में डूबती नैया

इश्क में उसके पड़कर हम भी खाने लगे पान गली में उसके खोल दी गोलगप्पे और समोसे की दुकान रोज़ आने लगी दुकान पर गोलगप्पे खाने हम भी लगे उसको रोज़ फ्री में खिलाने बिना देखे हमारी नज़रें करने लगी परेशान सुबह छ: बजे ही खोलने लग पड़े हम दुकान वह भी सुबह सुबह ही […]

कविता

नन्हीं प्यारी गुड़िया हमारी

घुटनों के बल रेंगती हाथों से चलती ए ए करके मुझे अपने पास बुलाती कभी दादा दादा आवाज लगाती कभी तेजी से रेंगती मेरे पास आ जाती पूजा की घंटी जब मैं बजाता हाथ में पकड़ने से भी डर जाती कभी चमच्च उठाती कभी थाली गिराती अपने आप खाने को हाथ बढाती बड़ी उत्सुकता से […]

कविता

याद करें उन वीरों को

आओ शीश झुकाएं मिलकर हम याद करें उन वीरों को आ न सके जो घर लौट कर उन शूरवीर असली हीरों को शीश नवाकर माता पिता को निकल पड़े थे घर से सीना ताने पीठ मत दिखलाना रण में यह बात कही थी माँ ने छोड़ गए सब अपने पराये वापिस आ न सके माँ […]