कविता

बागों में जब भी आती है बसंत

सरस्वती की वीना से निकली झंकार

बार बार कहती है सुन सुन सुन सुन

पानी का बुलबुला है यह जीवन

भक्ति के मार्ग को तू चुन चुन चुन चुन

कैसे होगा हम सब का उद्धार

जब भूल गए सब संस्कार

दौलत के नशे में भूल गए अपनों को

याद नहीं रखे दूसरों के उपकार

बागों में जब भी आती है बसंत

दूर से नज़र आते हैं पीली सरसों के फूल

रस से भर जाती है पेड़ों की डालियां

मौसम प्रकृति भी सब होते हैं अनुकूल

पंछी भी गाने लगते हैं सुंदर तराने

चूमते हर कली को मदहोश भंवरे दीवाने

पेड़ों पर फूलों की जैसे आ जाती है बहार

भीनी भीनी खुशबू से मन लगता है झूमने गाने

कोयल कूकती है बसंत के बहाने

भँवरे बन जाते है कली के दीवाने

मौसम हो जाता है ऐसा खुशगुबार

हर कोई लग जाता है खुसी से गुनगुनाने

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र