स्वर्ग में धरना
स्वर्ग के विश्वसनीय एकाउंटेन्ट चित्रगुप्त व्हाट्स एप पर इंद्र से कुछ निर्देश ले रहे थे, तभी मैं नारायण-नारायण करते हुए प्रकट हुआ.
“कैसे आना हुआ मुनिवर? इस बार के पृथ्वी लोक का टूर कैसा रहा? क्या क्या किया? कहाँ कहाँ घूमे? अब आगे का क्या प्लान है और ये आपके सर पे टोपी कैसी है? अपने जूड़े को कैसे एडजस्ट किया?” चित्रगुप्त ने एक ही सांस में ढेर सारे सवाल कर डाले.
“क्या यार मरदे तुम भी धरनामैन की स्टाइल में एक साथ सवाल करते हो? थोडा पानी पी लिया करो, जवाब तो हम देंगे ही. रही टोपी की बात तो अभी भारत में इसी का चलन है, ये नहीं पहनी तो चाहे तुम दानव हो या देवता, दानव की श्रेणी में ही आओगे, इज्जत भी कोई चीज है कि नहीं? गुंडों से बचना है तो गुंडों जैसे बन जाओ” – आई रिप्लाईड..
“लेकिन मुनिवर आपको इसी क्या जरुरत?” चित्रगुप्त शंकालू होकर पूछ बैठे.
“पहले तो मुझे भी जरुरत समझ में नहीं आयी, पर जिस कोन्फीडेंस से धरनावाल सिर्फ सवाल पूछने के लिए मुंह खोलते हैं, उनका मुँह माफिया लेन की तरह है, वन वे, सिर्फ प्रश्न के लिए खुलता है, जवाब के टाईम पे फेविकोल पी के उस कम्पनी से भी चंदा वसूल लेते है कि देख तेरा पिया तो तू धन्य है, मैं समझ गया कि ब्रह्मा जी ने कोई गोची किया है, बिना किसी को बताये दसवें अवतार बना के विष्णु जी को ही भेजा है, सो मारे डर के मै मोपलावतारा के सिर्फ प्रश्न पूछने के लिए खुलते मुंह के सामने मैंने कुछ पूछने के लिए अपना मुंह नहीं खोला, हालाँकि ऐसा नहीं था, कि मैंने कोशिश नहीं की, एक बार की थी, लेकिन मोफ्ल्रावातर के साथ शव बम की भूत प्रेत मंडली भी है उन्होंने मुझे खूब कूटा, मेरे बाल बिखेर दिए, मेरी सारंगी तोड़ दी. मुझे फेचकुर फिंकवा दिया, लेकिन अब वो ठहरे प्रभु, मैं क्या करता? सो टोपी पहन ली.”
“तो आप ब्रह्मा जी से शिकायत क्यों नहीं करते?”
“गया था उनके पास, लेकिन उन्होंने इस घटना में अपना हाथ होने से साफ़ इनकार कर दिया.”
“फिर ?”
“फिर विष्णु जी के पास गया, उन्होंने भी कहा की वो मै नहीं हूँ.”
“फिर ?”
” फिर मै दुबारा ब्रह्मा जी के पास गया? तो वो मुझे अपनी कार्यशाला ले गए और एक आलमारी पट को दिखा बोले- ‘जानते हो ये क्या है? ये है दिमाग? शरीर बना ही था कि वो बिना दिमाग के भाग लिया, मैंने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो भागता रहा, कभी अमरावती, कभी स्वर्ग, वहां जा के सबको अंट शंट सुनाया. लक्ष्मी को कहा कि आपके पास जो नोट है वो बिना लेखा जोखा का है. दूतगण पकड़ने को हुए तो वहां से फिर भागा, नरक में जा के वहां के लोगो को भी डराया, बोले- देवताओं के खिलाफ मेरा साथ न दिया तो बिजली पानी बंद कर दूंगा, वो उसके साथ हो लिये, एक बार फिर देवताओं और असुरो में युद्ध हुआ, एक समय ऐसा भी आया कि जब वो हारने लगा, लेकिन एक बार फिर वह दानव सहित पृथ्वी पर कूच कर गया, बाकी तो तुम वही से आ रहे हो, बाकी का तुम बताओ.’
“हे परम पिता, आपका बनाया वो डैमेज पीस अत्यंत आतुर है कुर्सी के लिए, लेकिन समस्या वही है कि जो यहाँ थी, कहीं एक जगह टिकता नहीं, किसी एक कुर्सी पे तशरीफ़ नहीं धरता, ऐसा नहीं कि कुर्सियों में कील गड़े पड़े हैं, बस भागता रहता है. अलग अलग कुर्सियों के लिए मानो म्यूजिकल चेयर खेल रहा हो.” मैं उवाच.
“भागना, धरना देना और प्रश्न पूछना उसका अन्तराष्ट्रीय होबी है, खुद कुर्सी पे न हो तो कुर्सी धारक के बजाय विपक्ष से प्रश्न पूछता है, कुर्सी पे हो तो जनता से प्रश्न पूछता है, खुद जनता रहे या नेता रहे या शासक, वो सदाबहार धरनामुग्ध है, यदि उससे गलती से भी जनता ने प्रश्न पूछ लिया तो उसे अम्बानी का बिकाऊ आइटम कहता है और दबा के खांसता है हर बात पे, कुछ तो कहते है वो बलगम से पैदा हुआ है इसलिए स्वभावतः खांसता है.”
“ओह्ह्ह ऐसा ?? तो अब यमराज ही मदद कर सकते है पृथ्वी वासियों की” ब्रह्मा उवाच .
“फिर क्या हुआ मुनिवर” – चित्रगुप्त आस्क्ड.
“फिर क्या यमराज चल दिए अपना सोटा ले के उसको सोटने.”
“फिर ??”
“फिर क्या, फिर धरनामैन गुस्से में आ गया, जिससे मलेशिया वाला विमान गायब हो गया, उसे समुद्र निगल गयी, बोला तू क्या मुझे मारेगा? मुझे कूटने के लिए क्या मेरे ससंदीय क्षेत्र के लोग क्या कम हैं? देख यमुवा, ये कूट-काटकर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो तुम्हरी क्या औकात है? हम लात–मार-प्रूफ हैं. और सुनो मै समझ रहा हूँ, तुम मोदी से मिले हुए हो, इस काम के लिए यहाँ तक आने के लिए अदानी ने तुम्हें पैसा दिया है.”
“फिर क्या ?”
“फिर महाराज, उसे तड़ तड़ अपने गुर्गो से उनके गुर्गो को मैसेज करवाया है, अब यहाँ स्वर्ग में आ रहा धरना देने, इसीलिए मै भागा भागा आया ताकि सुचना दे दूँ.”
इतना सुनते है चित्रगुप्त बेहोश हो गए और मैं उनके इलाज के लिए अश्विनी कुमार बंधुओं को लेने जा रहा हूँ.
wonderful viangh!! really really fantastic.
आभार ब्रम्हा भाई ,
हा हा हा बढ़िया धरना दिए हैं आप
आभार केशव भाई 🙂
करारा व्यंग्य. वाह वाह! आपने धरनामैन की असलियत को खूब उजागर किया है. बधाई !
आभार विजय सर 🙂