रिश्ता
हर एक सूरत मुझे अब तो
तेरी सुरत सी दिखती है
देखता हूँ जिधर भी मैं
तेरी मूरत सी दिखती है
कभी दिंन के उजालों में
रात के अंधेरों में
बरसती बारिश की बूंदों में
बसंत की बहारों में
ना जाने क्या रिश्ता है , तुझसे
के अब हर पल मुझको
तेरी ज़रूरत सी दिखती है
देखता हूँ जिधर भी मैं
तेरी सूरत सी दिखती है
सुधांशु रंजन शुक्ल
मो0- 9454346855
अच्छी कविता.
बहुत सुन्दर