वो बेटियाँ कहाँ से लाऊँ ?
आश्वासन दे सके
वो अल्फाज कहाँ से लाऊँ
लिखने से भला क्या होगा
उस माँ की दो बेटियाँ कहाँ से लाऊँ
कानून के नुमाइन्दे भी इस कद्र
वहशी हो गये अब
ऐसे में बचा सके नारी की अस्मिता
वो पुरुष कहाँ से लाऊँ
बंद करिये अब सांत्वना देना
जो बीत गया वो बीत ही जाता है
जात पात का उढ़ा दो जामा
हुक्मरानों का अब यही कहना है
देखो / सुनो और तमाशाई बनो
घर पहुंचकर फिर से अपनी रजाई बुनो
आम है कोई नई बात नहीं
संगीन है अफ़सोस मुझे बच सके नारी जहाँ
अब मैं वो देश कहाँ से लाऊँ
रुचिर अक्षर #
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आपने बहुत अच्छे शब्दों में हम सबकी पीड़ा को प्रकट किया है.