“अपेक्षा ही उपेक्षा की वजह हैं”
हां!
मैं भी समझती हूं,..
“अपेक्षा ही उपेक्षा की वजह हैं”
पर तुमने कभी ये सोचा
अपेक्षा की वजह क्या है???
शायद तुम्हे याद नही
हमारे बीच एक रिश्ता है,
रिश्ता कोई भी हो,.
हर रिश्ते का होता एक दायरा,..
दायरे में होते हैं कुछ अधिकार,
और अगर अधिकार में
प्रेम शामिल हो,..
तो पनपती है अपेक्षाएं,..
तुम्हे लगता है
तुम्हारी उपेक्षाओं की वजह से,
प्रेमपूर्ण अधिकार से उपजी
अपेक्षाएं खत्म हो जाएगीं,…
पर प्रेम,..???
और अगर तुम सोचते हो
मेरा प्रेम मिट जाएगा,..
तो तुमने
प्रेम को समझा ही नही,…,….प्रीति सुराना
भावों की अच्छी अभिव्यक्ति !
धन्यवाद