61वां पन्ना (एक चुप्पे शख्स की डायरी)
समझ आते आते ही आया तुम्हारा प्रेम…।
परिंदों से प्रेम करते हुए पिंजरे खरीद लाए…
हिरण जंगल से बाड़े में आ गए..।
प्रेम कहते रहे और बनाते रहे मकान का नक्शा…
कि जिसमे लोग दो रहे और कमरे तीन हो…।
हर खुली जगह जमीन की बरबादी की तरह देखी जाती रही….
अभियंताई बहस तब तक चली…
कि जब तक तय ना हो गया घर को मकान में समेट देना…
इस बीच जब तक तुम कमरों के आकार नापने को फीता ढूंढते रहे….
मै नक्शे में वे जगहें ढूंढता रहा, जहाँ खिडकिया हो सकती थी…।
मकान की नींव में दबते-दबते दब गया घर….
#माया मृग