कविता : चुप्पी अतिआवश्यक है
संघर्ष सृजन के लिए किया जाता रहा
सृजन से फिर आकांक्षाओं की पूर्ति
पूर्ति के बाद बढ़ता उबासीपन
उबासिया से पुरी देह में पसर गयी
एक चुप्पी
एक चुप्पी ही जीवन का भेद खोल देती है
वो दरवाजे भी खोल देती है जो
पडोस के मुहाने पर थे
शंका बनी ही रही
आवाज तो नही पहुचती होगी ना
फिर न जाने बरसात का पानी
क्यों नही ठहरता आता जाता रहता है
इन्ही बंद दरवाजो से
शंका क्ष्राप है
स्वत्व के साधुत्व बिना वह मिटता नहीं
आदम जात की पूर्ववर्ती चिरकाली आदत
अकारण पनपती भ्रांतियां
को विराम देती चुप्पी अतिआवश्यक
है जीवन के करीब हो जाने के लिए !