कविता : भय मुक्त
रात जहाँ पहुचती है घुप्प अँधेरे के साथ
मौत अपने वहशीपन से बाहर निकलकर
विचरण करती है
तलाश करती किसी की जिन्दा लाश
जहाँ एक अंतहीन सन्नाटा
पसरता जाता है
झील करवट बदलती है
चीटियाँ तक छिप जाती है बिलों में
भला भय पर विजय पाना
भय को जीत लेना नहीं
भय की गहराई में उतरते जाना है
भय को समझ लेना ही भय से मुक्त होना है !