जब प्रियतम मुझसे बात करें
जब धर्म – कर्म की बात करूँ, ये मर्म सदा उत्पात करें
जीवन के दुर्गम पथ पर ये, ..बस कष्टों की बरसात करें
सब लोग सोच के जीते है, कि मर के मोक्ष को पा लेंगे
मुझे जीते जी मोक्ष मिले, जब प्रियतम मुझसे बात करें
पाप पुण्य के ज्ञान सभी, प्रिय व्यर्थ प्रेम के सन्मुख हैं
प्रियतम से हर्षित हूँ मैं, प्रिय के बिन दुःख ही दुःख हैं
बस प्रियतम ही मेरे कल्पन को मिलकर पारिजात करें
मुझे जीते जी मोक्ष मिले, जब प्रियतम मुझसे बात करें
जो सत्य तथ्य से विचलित हो वो तर्कों से जीते कैसे
स्वर्ग नर्क सब कल्पित हैं, प्रिय बिन जीवन बीते कैसे
प्रियतम हैं साकार ब्रह्म, निकृष्ट को जो अभिजात करें
मुझे जीते जी मोक्ष मिले, जब प्रियतम मुझसे बात करें
वेद पुराणों से अर्जित क्या, यदि प्रियतम का मान नहीं
निष्फल बीत गया जीवन, यदि किया प्रेम सम्मान नहीं
वो सब कैसे ईश्वर को पायें, ह्रदय पर जो आघात करें
मुझे जीते जी मोक्ष मिले, जब प्रियतम मुझसे बात करें
प्रभु को खोज नहीं पाए, यदि बीत गया है जीवन सारा
कृष्ण प्रेम के शरणागत हैं, प्रिय कृष्णागत है जग सारा
जो ढूँढ रहे हैं ईश्वर को, वो प्रेम को तो आत्मसात करें
मुझे जीते जी मोक्ष मिले, जब प्रियतम मुझसे बात करें
___________________________अभिवृत
“मुझको जीते जी मोक्ष मिले, जब प्रियतम मुझसे बात करें” वाह ! बहुत खूब, अभिवृत्त जी.