कविता : जो टूट गया
सधे हाथों से
थाप थाप कर देता है आकार
गढ़ता हैं घड़ा
गढ़ता हैं तो पकाता हैं
पकाता है तो सजाता है
सज जाता है जो… वह काम आता है…
हर थाप के साथ
खतरा उठाते हए
थपते हुए , गढ़ते हुए
रचते हुए , पकाते हुए
टूट जाता है जो…वह टूट जाता है….
जो काम आया…उसकी कहानी आप जानते है
जो टूट गया , मैं तो उसके लिए लिखता हूँ कविता….।
बहुत खूब !