कविता : नेकी कर कुएं में डाल
कुआं है , पानी है
गहरा , बहुत गहरा
गहराई कुएं की नहीं , पानी की है
यह पहली बात है…
पत्थर फेंकते हुए लोग
नहीं जानते
पानी टूटता नहीं , पानी नहीं जानता
पत्थर का भय
यह दूसरी बात….
तीसरी बात यह कि
जब तक कुआं है
जबतक पानी है
पत्थर आएँगे यूं ही…
गहराई सब रहस्य सहेजे रहेगी
बस आएगी एक आवाज
वह प्रतिरोध नहीं
स्वीकृति है….
लिजलिजी काई
तालाबो में होती है…कुए में नहीं…
( नेकी कर कुएं में डाल…कुआं सदियों तक बचाए रखेगा उसे…)
वाह ! वाह !!