कविता : सुई-धागा
तुमने जो
सुई-धागा दिया था
सितारे टाकने को…
उससे मैने अपनी उदासी की
उधड़ी चादर टांक ली
कोई क्योंकर जान पाए
उदासियों के पीछे कौन रहता है…
(यकीन मानो मैने अबतक किसी को जानने नहीं दिया की….सितारे कहाँ है…टाकने कहाँ थे और सुई-धागा तुमने क्यों दिया…)