गद्य काव्य : एक चुप्पे शख्स की डायरी 46 वां पन्ना
ठहर जाने से खत्म नहीं हो जाते रास्ते…थक कदम गए…रास्ते नहीं । हर छूटते मील के पत्थर को देखना…खुद को दिलासा देना है और सामने पड़े रास्ते को देखना बस एक उम्मीद…। पत्थर चले कहाँ तक की सूचना है , कितना बाकी है इसे नहीं पता…यह संशय भी साथ यात्रा करता है…पहुचेंगे वही , जहाँ से चले थे…धरती अपनी परिधि नहीं छोड़ती और रेखाएं कितनी भी खीचों , तुम्हारी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं…। गोले से बाहर नहीं जाती सोच….धरती पर चौखाने खीच देने से धरती चौकोर नहीं हो जाती…।
कदम चलने नहीं देते…रास्ते रुकने नहीं देते…इस तरह जारी है सफर….