कविता

मेरा भांजा

छोटा सा मुखड़ा
हँसती आँखें
खिलती जुल्फें
नटखट अदा से
दे जाता अपनापन
जीवन की लालसा
जिजीविषा जगाता
खुशियाँ बाँटता
मुझे माँ कह पुकारता
मुझमें कुछ भरता
एक रोशनी दे जाता
इस दुनिया में
सच्चा रिश्ता बताता
यह रिश्ता आज भी
कल भी
जीवन की सच्चाई दे जाता

चतुरिनी महेषा प्रनान्दु श्रीलंका

वरिष्ठ प्राध्यापिका गम्पह विक्रमारच्चि आयुर्वेद विद्यायतन कॅलणिय विश्वविद्यालय श्री लंका

2 thoughts on “मेरा भांजा

  • सचिन परदेशी

    सुन्दर सहज कविता ! लेकिन दुर्भाग्य की जीवन की इतनी आसानी से नजर आनेवाली सच्चाई देखने की फुर्सत किसे है ! आशा है बड़े बड़े धर्म ग्रंथों में इस सच्चाई को धुंडने वालो को आपकी यह कविता पढ़कर कुछ एहसास हो जाए !

  • विजय कुमार सिंघल

    वात्सल्य रस से पूर्ण सुन्दर कविता !

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