कविता

तुम…. बस पागल कर देती हो

नैन कमान के चितवन से …..बस घायल कर देती हो 
कैसे तुमको समझाऊँ तुम…. बस पागल कर देती हो

जन्मों से प्यासा था मैं, हलक में लार थी बची नहीं
प्यासे प्यासे कंठ में तुम, प्रिय गंगाजल भर देती हो
कैसे तुमको समझाऊँ तुम…. बस पागल कर देती हो

चारो ओर था सन्नाटा, बस मायूसी सबका हांसिल थी
जीवन के अंधकार को तुम अपना काजल कर देती हो
कैसे तुमको समझाऊँ तुम….. बस पागल कर देती हो

जीवन बार भागा सच से, मैं लोभी, पापी, अभिमानी
मुझ तामस नीच कलिस्ट पे तुम आँचल धर देती हो
कैसे तुमको समझाऊँ तुम…. बस पागल कर देती हो

क्योँ तुमको चाहा है, क्योँ तुम पर जान निसार करूँ
दुखों से तपते सहरा पर प्रिय तुम बादल कर देती हो
कैसे तुमको समझाऊँ तुम…. बस पागल कर देती हो

_________________________अभिवृत

One thought on “तुम…. बस पागल कर देती हो

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रेम से परिपूर्ण अच्छा गीत.

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