कविता : तुमसे बड़ा धूर्त नहीं कोई
तुमसे बड़ा धूर्त नहीं कोई
तुम रिश्तो के बीज बोने में अव्वल हो
पर तुम्हारे भीतर पनप रहे अहं को रोक लो
तुमने अबतक गिनवा दिए
न जाने कितने स्वार्थी लोगो के नाम
गिनवाते जाने की आतुरता तुम्हारे भीतर
से भी छलका रही है स्वार्थ , तुम भी इससे परे नहीं
आदतन ही तुमने न जाने कितने
दिलो को तोडा है अबतक….
अपनी अपेक्षा से मुहं मोड़ा है ….
खड़े कर लिए अपने साथ कुछ बुत
मुर्ख , रिश्ते आजमाईश पर नहीं चलते
न वो चलते है तुम्हारे चलाए रखने की
जदोजहद से
तुम मरकर भी उससे मुक्त नहीं होते
और जीते जी पुरजोर कोशिश के बावजूद
भी तुम उनसे बंध नहीं सकते
अपने हिस्से की अच्छी लिखते हो तुम
कविता….कवि हो….कविता लिखो,
कविता सुनो….
ये बेकार बहस का हिस्सा बनना छोडो
और कयास सिर्फ कयास
ही रह जाते है अपनी जड़ में गीलापन
महसूस करो की दंभ के बादल बरस कर
छंट जाए यही फेसबुक पर….
की साथ न जाए यहाँ से लौटते वक्त
संदेह/द्वेष और
तुम्हारा अधेड़ उम्र का बडबोलापन
तुम्हारी मध्यम पड़ गयी नजरो से दीखते
है तुम्हे सिर्फ मुर्ख….और दिखाने पर
उतर आते हो अपना मुर्खपक्ष
अरे मुर्ख…तुमसे बड़ा धूर्त कोई और नहीं ।।
रुचिर अक्षर #
जुकेरबुर्ग की हेल्प लाइन का लाभ उठाने वाले
कुछ कलात्मक लोगो को समर्पित रचना…..
बहुत खूब ! आपके फेसबुकियों की अच्छी खबर ली है.