ग़ज़ल : जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे
जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे
वो ही दूर अब हम से जाने लगे थे…
जो कहते थे आँखें तेरी हम बनेंगे
वही हम से नज़रें चुराने लगे थे…
थी उनको जिन भी रकीबों से नफरत
उन्हें को वो अपना बताने लगे थे…
जिन पर यकीं था खुद से भी ज्यादा
वही झूठा कहकर बुलाने लगे थे…
जो सोचा नहीं था ख़्यालों में हमने
उसे सोच-सोच कर घबराने लगे थे…
न मांगी ख़ुदा से थी उसकी ख़ुदाई
क्यों ख़ुदा भी अब हमको भुलाने लगे थे…
जो मिलते थे सहरा में साहिल पे ‘आशू’
वही मिलने में अब कतराने लगे थे…
-अश्वनी कुमार
वाह ! वाह !! बहुत खूब ! अच्छी ग़ज़ल.