ग़ज़ल
जिसके लिए मैंने अपनी हस्ती को मिटा दिया
आज उसी ने मुझे जख्म दे दे कर तड़पा दिया
अपने हसीं लम्हों को उस पर निसार किया
उन्हीं लम्हों को उसने जिंदगी से हटा दिया
कर दिया उसे जिंदगी से दरकिनार मैंने
एक बेवफा से उम्र भर को पीछा छुड़ा दिया
कभी कभी खुद से ही नाराज हो जाती हूँ मैं
क्यों मुहब्बत को उस खुदगर्ज़ पर लुटा दिया
खुद के लिए जीने का मैंने फैसला कर लिया
ए जिंदगी अब ना कहना तुम,मुझे दगा दिया
कविता बहुत ही अच्छी है , मैं कवी तो नहीं हूँ लेकिन जो दर्द और उस का इलाज बिआं किया है काब्लेतारीफ़ है .
अच्छी ग़ज़ल, अंजना जी.
खुद के लिए जीने का मैंने फैसला कर लिया
ए जिंदगी अब ना कहना तुम,मुझे दगा दिया,
वाह, बहुत खूब.