यौन शिक्षा कलंक है
यौन शिक्षा पर इधर कई दिनों से टी बी चैनलों पर बहस चल रही है जिसमें कई संभ्रांत महिलाएं भी यौन शिक्षा के पक्ष में अपने तर्क देते हुए देखी जाती हैं। प्रश्न यह उठता है कि अनादि काल से भारत में रहने वाले लोग जो चार पुरुषार्थों की कामना करते आये हैं जिसमें से एक पुरुषार्थ ‘काम ‘ भी है क्या हमारे पूर्वज ”काम ” से अनभिज्ञ रहे और यदि अनभिज्ञ रहे तो आज तक उनकी वंश परंपरा कैसे चली आ रही है।
जिस देश में पशु -पक्षी , यहां तक कि जलचर ,थलचर , नभचर भी अपनी वंश परम्परा को दिन दूनी रात चौगनी बढ़ाते आ रहे हैं तो क्या यह माना जाये कि इन्हें सहवास का ज्ञान नहीं है बल्कि यह अपने आप होता आ रहा है। सच्चाई तो यह है की सहवास/ यौन क्रिया का सही प्रकार से ज्ञान जितना मनुष्येत्तर जीवों को है उतना स्वयं मनुष्य को नहीं है।
पशु- पक्षियों में समलैंगिकता या विपरीत जातियों में यौन सम्बन्ध का कोई उदहारण नहीं मिलता, वहीं मनुष्य को देखा जाये तो समलैंगिकता के पक्ष में जगह -जगह प्रदर्शन हो रहे हैं. तमाम पशु -पक्षीयो के साथ यौनसंबंधों की चर्चा सुनने और पढने को मिलती रहती है. एड्स तथा अनेक जानलेवा बीमारियां इसी का परिणाम है।
जिस देश में गर्भाधान षोडस (१६) संस्कारों में एक संस्कार है तथा चार आश्रमों में से गृहस्थ एक आश्रम है जिसमें वंश परंपरा को बढ़ने का विधान है ऐसे में कक्षा १२ से पूर्व यौन शिक्षा कहाँ तक उचित है। भारत में इंटरमीडिएट तक यौन शिक्षा लागू करना किसी भी सरकार के लिए उचित नहीं है बल्कि अपराध है साथ ही कलंक भी है।
जो लोग यौन शिक्षाके पक्ष में बहस करते हैं चाहे वे पत्रकार ही क्यों न हैं वे सबके सब या तो बामपंथी विचार धारा के हैं या फिर उनके पूर्व बंश में कहीं न कहीं कोई दोष है अथवा भारतेत्तर पाश्चात्य सभ्यता से ग्रसित हैं। अच्छा तो यह होगा कि यौन शिक्षा के स्थान पर नैतिक, सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय तथा पारिवारिक शिक्षा दी जाये जिससे व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक का भला हो।
ब्रह्मचारियों के देश में यौन शिक्षा की जगह राष्ट्रवाद का पथ होना चाहिए,,!! अच्छा लेख !
वास्तव में देश को यौन शिक्षा की नहीं, योग शिक्षा की आवश्यकता है. इससे स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ेगी. बीमारियाँ कम होंगी.
मैं आपसे सहमत हूँ. तथाकथित यौन शिक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है. इसकी जगह नयी पीढ़ी को भारतीय संस्कृति की शिक्षा दी जानी चाहिए.