रमज़ान मुबारक हो
रोज़े को उसकी भावना के साथ बुरे कामों से बचते हुए और नेकियों में तरक़्क़ी करते हुए रखें ताकि रोज़ेदार का कैरेक्टर पहले से ज़्यादा बुलंद हो जाये. आप अपना कैरेक्टर बुलंद करके अपनी तक़दीर को संवार सकते हैं. अच्छाई को हर जगह इज़्ज़त दी जाती है.
आपकी भावनाएं अच्छी हैं, लेकिन क्या वास्तव में इसी भावना के साथ रोजे रखे जाते हैं? रमदान के दिनों में बुरे कामों से बचने की नसीहत सब देते हैं, पर बिरले ही इसका पालन करते हैं. आजकल इराक और कई इस्लामी देशों में गृह युद्ध चल रहे हैं. क्या उनमें इस भावना का पालन किया जा रहा है?
जी, आदरणीय भाई साहब आपने सही कहा है कि आजकल इराक़ और मुस्लिम देशों में ख़ून ख़राबा चल रहा है। अगर ख़ुदग़र्ज़ शासक जनता को ग़ुलाम न बनाते और जनता के जागरूक बुद्धिजीवी उसका विरोध न करते तो यह सारा ख़ून ख़राबा न होता और कहीं ऐसा भी है कि शासक ठीक है लेकिन विपक्षीगण जनता पर ख़ुद सवार होना चाहते हैं।
दुनिया में यह सब विध्वंस वैदिक काल से ही चला आ रहा है। तभी से यानि 1 अरब 96 करोड़ साल से वैदिक ऋषि लोगों को अपने नकारात्मक मनोभाव और दुष्ट कर्मों के त्याग की शिक्षा देते आ रहे हैं। आज भी हर तरफ़ सभी धर्म-मतों के लोग यही सब शिक्षा दे रहे हैं। जो मान लेता है, उसका कल्याण अवश्य हो जाता है। ख़ून-ख़राबा करने वाले राजनैतिक तत्वों के बीच आज भी हिन्दू-मुस्लिम जनता अम्नो-अमान और विकास में ही विश्वास रखती है। लोगों को बौद्धिक रूप से और ज़्यादा जागरूक करके असामाजिक अतिवादी विध्वंसक तत्वों को बताया जा सकता है कि उनकी महत्वाकांक्षाएं सेवा और परोपकार के रास्ते से भी पूरी हो सकती हैं।
इस पोस्ट में हमने ईरान-इराक़ की कोई बात नहीं की लेकिन आपकी चंद लाइनों के कारण हमें अपनी पोस्ट से लम्बा जवाब लिखना पड़ा। हम इस सब बहस में नहीं पड़ना चाहते क्योंकि इसका अंजाम दिलों में दूरियों के रूप में सामने आता है।
बात वह है जो आपके लिए हमारे दिल में मुहब्बत पैदा करे और आपके दिल मे हमारी।
आगे से हम पोस्ट के मुददे से हटकर किए गए किसी ऐतराज़ी कमेंट का जवाब नहीं देंगे क्योंकि पिछले 2 महीनों में वालिद साहब और फुफेरे भाई की मौत यह बात समझा गई है कि ज़िन्दगी के इस मुख्तसर से वक्त में हम अपनी संतान को और अपने मित्रगणों को जिन जीवनापयोगी अच्छी बातों को सिखा सकते हैं, सिखा दें। जीते जी और मरने के बाद वही अच्छी बातें, अच्छे कर्म काम आते हैं।
राजनैतिक विद्वेष और निरर्थक बहस नुक्सान देने के सिवा कुछ नहीं करता।
आपके प्रेम के लिए आभारी,
अनवर जमाल।
…और एक शेर ख़ास आपके लिए
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनकी परिभाषा मुश्किल है
ऐसे रिश्तों का आधार समझता केवल अपना दिल है
आपके वालिद साहब और फुफेरे भाई के देहांत का समाचार जानकार बहुत दुःख हुआ. ईश्वर उन्हें स्वर्ग में स्थान दे. आपको इस वज्रपात को सहने का धैर्य दे. मौत के बाद आदमी के अच्छे कर्म ही उसके साथ जाते हैं. इसलिए हम हमेशा अच्छे ही काम करें, यही भावना होनी चाहिए. व्यर्थ की बहस और नफ़रत का कोई लाभ नहीं है.
अनवर साहिब , आप के पिता जी और फुफेरे भाई के दिहांत का मुझे बहुत खेद है , अल्ला करे उन्हें जनत में जगह मिले . एक बात मैं भी कहना चाहूँगा कि धर्म कोई भी हो अगर उस पर सच्चे दिल से अमल किया जाए तो दुनीआं में शान्ति काएम हो सकती है . दुःख की बात यह है कि ऐसा होता नहीं . जब सभी लोग अपने अपने धर्म अस्थान में भगवान् अल्ला को याद करने जाते हैं तो लगता है यही सवर्ग जन्नत है लेकिन बाहिर आते ही फिर वोही वातावरण में शामिल हो जाते हैं . शिया सुन्नी एक दुसरे को नफरत की निगाह से देखते हैं , सिखों में भी मजबी झगडे हैं हिन्दुओं में भी हैं . भगवान् अल्ला को जिस भी तरीके से याद करो मतलब तो वोही है , फिर यह जो जो कत्लोगारत हो रही है किया है ? इस से अब एथीइज़म की शुरुआत हो गई है . यह जो सब तिओहार धर्मों में बने हुए हैं एक आडम्बर बन कर रह गिया है . ख़ुशी मनाओ , खाओ पीओ , तोहफे दो .और कुछ नहीं . मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन मंदिर गुरदुआरे या मस्जिद में जाता है , मुझे तो यह देखना है कि उस का मेरे साथ कैसा वर्ताव है , मुझे नफरत तो नहीं करता कि मैं एक सिख हूँ ?