आओ शोध करें
मुझे एक ऐसे रिसर्च स्कोलर की आवश्यकता है, जो मेरे साहित्य पर गहराई से शोध करके अपने लिए पी. एच. डी. प्राप्त करना चाहता हो। विश्वास रखिये मैं शोधकर्ता का खून नहीं पिऊँगा, अपितु उसे रोज चाय और बिस्कुट खिलाऊँगा। जहाँ तक गाइड का प्रश्न है वह भी मैं सुलभ करवा दूँगा। गाइड तो बस नाम मात्र का होगा, बाकी सारा शोध मेरी ही देखरेख में होगा। गाइड से घबराने की आावश्यकता नहीं, वह तो मेरा ही दोस्त है, इसलिए उसकी तरफ से कोई अड़चन नहीं होगी, उससे मेरी बात हो गई है, वह तो केवल दिखावे का गाइड होगा, वर्ना शोध पर नजर तो मेरी और शोधकर्ता की ही होगी।
मैं पुनः खुलासा कर दूँ कि न तो मैं रिसर्च स्कोलर से सब्जी मँगाऊँगा, न ही आटे का पीपा चक्की पर डलवाऊँगा, न ही अपने बच्चों को पढ़वाऊँगा या स्कूल भिजवाऊँगा और न ही बाजार के दूसरे कार्य कराऊँगा। भला स्कोलर्स से भी यह कार्य करवाये जाते हैं? दूसरे प्राध्यापक ऐसा करते रहे होंगे, परन्तु मैं विद्वानों का अपमान अपना अपमान समझता हूँ।
मेरा तो बस इतना-सा स्वार्थ है कि मैंने इतना साहित्य लिख मारा है कि मेरी खुद की समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मैंने लिख क्या दिया है ? बस थोड़ा एक समझदार आदमी मिल जावे तो साहित्य का मूल्यांकन हो जावे। इससे भी डरने की आवश्यकता नहीं है कि मेरे ऊपर किये काम पर विश्वविद्यालय पी. एच. डी. देगा या नहीं, अजी देगा क्यों नहीं, यदि शोध होगा तो।
वैसे शोध में देखा क्या जाता है। बस केवल तीन-सौ से चार-सौ पृष्ठ अच्छी जिल्द में सफाई के साथ बँधवा दीजिए। बस यही सफलता है। वरना इतने पृष्ठ चाटने की हिम्मत किसकी है। कौन पढ़ता है। एक्जामिनर तीन महीने थीसिस को घर में अपने स्टेडी रूम की टेबिल पर पटके रखता है, जिस दिन विश्वविद्यालय का टेलीग्राम आता है, उस दिन फटाफट रिपोर्ट लिखकर पोस्ट कर देता है। वैसे एक्जामिनर भी मेरे जानकार हैं। उन्हें जब वर्क पूरा हो जायेगा तो पत्र लिखकर या व्यक्तिगत रूप से मिलकर आपके रिसर्च वर्क पर अच्छी रिपोर्ट लिखवा दूँगा।
वाह ! वाह !! क्या करारा व्यंग्य किया है शोध करने और कराने वालों पर ! बधाई !